Book Title: Sadaivvatsakumar Charitram
Author(s): Matisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
Publisher: Ratilal Keshavlal
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________________ श्री सदैववत्स 85 भपतिरपि तद्वीक्ष्य प्राह पट्टादिकं विदम् // सर्व मदीयमेवास्ति कृत्वैवं प्राह विस्मितः // 11 // भांडागारिन् मदीयं तिं स्वर्णपट्टादिकं त्वया // भांडागारे नवा मुक्तं सोऽवादीदेव संशृणु // 12 // मुक्तं मया तु तत्सर्व कपाटतालकान्यपि // स्वहस्तेनैव दत्तानि भांडागारे दृढानि वै // 13 // तस्य रक्षाकृते शिक्षा भाण्डागारस्य रक्षकान् // दत्वा गृहे गतो राजन् ततस्तमाह भूपतिः // 14 // तर्हि तत् स्वर्णपट्टादि ततो द्रुतं समानय // सोऽपि पश्यति गत्वाथ दृष्टं किमपि नो तदा // 15 // राज्ञः पार्श्व समागत्य तदा सोवाच भूपते // स्वर्णपट्टादिकं नास्ति न जाने किमभूत्तथा // 16 // वेतालेनैव हस्तं स्वं विस्तार्य दिव्यशक्तितः // गृहीत मस्ति तत्सर्व दत्तद्वारादपि प्रभो // 17 // श्रुत्वा वृत्तान्त मित्यादि राजादय श्चमत्कृताः // कथयामासुरेतेषां चरित्रं कौतुकप्रदम् // 18 // नूनमेते महासत्वशालिनः संति भूतले // कस्यापि वस्तुनो नास्तिर्नास्तीति दृश्यते यतः // 19 // दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये // विस्मयो नैव कर्तव्यो बहुरत्ना वसुंधरा // 20 // सूरा जयंमि विरला उदारचित्ता तउ अविरलयरा // अबला भीरुआणं सरणपरा तेवि विरलयरा // Kaपुना राजा जजल्पाहो मम वेतालराक्षसैः // गृहमेव पराभुत मत्राभूत्कौतुकं महत् // 21 //

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