Book Title: Sadaivvatsakumar Charitram
Author(s): Matisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
Publisher: Ratilal Keshavlal
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________________ श्रीमदेव चरित्रम् 84 राक्षसीसाधनायोगाद्राक्षसरूपधारणात् // नियंते मारिता लोकै राक्षसनामधारकाः // 87 // भतादीनां तथा क्षिप्रचटिकारंधनं मतम् // क्रीडामात्रं यतः प्रोक्तं व्यंतराः कौतुकप्रियाः // 88 // श्रयत एव लोकेषु तैषां च कौतुकं प्रियम् // कथयामि महाराज मया श्रुतं यथा तथा॥ 89 // यथोग्राहणिकां कृत्वा कश्चिच्छ्रेष्टिवरो निशि // गृहद्वारे समागत्य भगिनीं भाषते सदा // 90 // आकार्य नामतः सैवं ले गुणसिरि गांठडी ॥अथास्य गृहपार्श्वे च वटद्रौ व्यंतरोऽवसत् // 91 // गुणसिर्या रूपं तेन कौतुकादेकदा घृतम् // ततः पंचशतद्रम्मग्रंथि लात्वा गतोऽथ सः॥ 92 // गतो रात्रौ गृहे श्रेष्ठी भगिनीं प्रति पृचति // द्रम्मग्रथिर्मया दत्तःमुक्तःक्क भगिनि त्वया // 93 // Ka सा प्रोवाचाथ हे भ्रातः कीदगग्रंथिः स आह सः॥ ग्रंथिः सायं मया हस्ते समर्पितोस्ति तेऽनघे // 9 // सा वक्ति मम हस्ते तु किंचित् केनापि नार्पितम् // चिंतितं श्रेष्ठिना चैषा वक्त्यनृतं कदापि न॥१५॥ Ke नूनं मम ग्रहद्वारसमीपे वटपादपः // वसति व्यंतरस्तत्र तेनाद्य छलितोऽस्म्यहम् // 96 // Kगतोऽथ साहसी द्रुतं श्मशाने नगराद् बहिः॥ पश्यति स यदा तावदपश्यत् भूतमंडलीम् // 97 // उचाल्योहाल्य मुंचंतः परस्परकरात्करे // द्रम्मग्रंथिं वदत्येवं ले गुणसिरि गांठडी // 98 //

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