Book Title: Rup Jo Badla Nahi Jata Author(s): Moolchand Jain Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala View full book textPage 4
________________ दिन बीतते गये-बड़ा चतुर योग्य व विद्वान था ज्योतिषका भी अच्छा जानकार था । साहित्य का भी पंडित था। और सबसे बड़ी बात अध्यात्म का भी ज्ञान प्राप्त किया उसने। एक दिन विवाह-सूत्र में उसे बांध दिया गया। बस ब्रह्मगुलाल बन गया बहरूपिया। साथ दिया मथुरामल ने। एक दिन बन कर आया 'अर्धनारीश्वरालोगों ने देखा और... भरपूर जवानी, इकलौता पुत्र,घर में कमी नहीं, साथ में पूरी स्वतन्त्रता, राजा की भीकपा,जो चाहता करता,कोई मना नहीं करता। मथुरामल से उसकी मित्रता हो गई। एक दिन... भई, मेरा मन चाहता विचार तो बुरानहीं। है कि बहरूपिया बनूं। है। अपना मनोरंजन कभीकुछ,कभीकुछ भी होजायाकरेगा रूप बनाऊँ और लोग और लोगों की प्रशंसा देखें तो दंग रह जायें, भी मिलेगी। देखते ही रहजायें। तुम्हारी क्या राय है? कमाल है! कैसा आकर्षक रूप-ब्रह्मगुलाल के क्या कहने । अदभुत कलाकार है यह। ऐसा रूप क्या कोई रख सकता है। कोई भी तो नहीं पहिचान सकता इसे। VVVV (EPage Navigation
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