Book Title: Rup Jo Badla Nahi Jata
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 24
________________ मथुरामल की पत्नी पहुँची अपने पति के || ठीक है, परन्तु कुछ न कुछ तो करना ही पास और... होगा,वरना ठीक है,वह मेरा मित्र है सुनो जी,कल तुमकहती हो तो चला उनकी पत्नी ब्रह्मगुलाल की पत्नी परन्तु क्या तुम नहीं जाता हूँ। और हाँ यह तड़फ-तड़फ आई थी।बहुत दुखी जानती कि जो वेष वह प्रतिज्ञा भी करता हूँ कि कर जान दे देगी है बेचारी कही थी धारण करता है उस उसको लेकर ही घर एकबार कोशिश तुम्हीं उसके पति को रूप ही वह हो जाता लौटुंगा वरना नहीं करके देखो तो समझा सकते हो। RAM अबमुनि उसका वेषही नहीं है,.. अब तो वह भावसेभीमुनिबनगया है। वास्तव में वह मुनि बन गया है। TIMADI मथुरामल पहुँच गये मुनि ब्रह्मगुलाल के पास.. यह तुमने क्या भोग...हः हः हः किया मेरे दोस्त! "भोग बुरे भव रोगबदावें,बैटरी है जगजीके। क्या यह अवस्था बेरसहाय विपाक समयअति,सेवतलागेनीके।) जोग धारण करने की थी। अभी तो वज अगिनि विषसे विषधरसे, तुमने भोग भोगे ये अधिके दरवदाई। भी नहीं और उन्हें धर्म रतन के चोर चपल अति, दगति पन्थ सहाई॥" छोड़ने की ठान ली। जरा अपनी पत्नी का तो ख्याल किया होता ILL MOR

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