Book Title: Rup Jo Badla Nahi Jata
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 26
________________ तो फिर मुझे भी। इसी पथ का पथिक बना लो ना अब मैं भी घर नहीं लौटुंगा । फिलहाल तो मुझे क्षुल्लक दीक्षा दे दीजियेगा। भली विचारी तुमने-जगत में धर्म हीसार है, और सब असार है -NCR और मथुरामल भी बन गये क्षुल्लक और रहने लगे मेनि ब्रह्मगुलाल के 'पासही.... हर एक की जुबान पर ये ही शब्द थे. "कलाकार हो तो ब्रह्मगलाल जैसा। जो रूप बनाया उस रूप ही हो गया। उसको पाकर तो कला भी धन्य हो गई। हंसी-हँसी में बनाये दिगम्बर मुनि के रूपको भी जिसने राजा के द्वारा दिये गये प्रलोभन को ठुकराकर कलंकित न होने P4 दिया" वह वास्तव में ही मुनि बनकर अपना आत्म कल्याण कर गया। 24

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