Book Title: Rup Jo Badla Nahi Jata
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 25
________________ भेया, गृहस्थ में रहते हुए भी तो तुम आत्मकल्याण के मार्ग पर चल सकते थे। अणुव्रतों का पालन करके, गुणव्रतों को अपनाते, और शिक्षाव्रतों का अभ्यास करके अन्त में समाधि मरण करते तो क्यासुख का मार्ग न मिलता ठीक है भैया, परन्तु गृहस्थ में रहकर पूर्ण सुख कहां। पूर्ण सुरव तो निराकुलता में है और पूर्ण निराकुलता है मोक्ष में, और मोक्ष की प्रान्ति बिना निर्गन्थ लिंग धारण किये होतीनहीं' Mom परन्तु इस पंचम MERAPHद६५ काल में मोक्ष कहां? न तो शरीर ही ऐसा और न मन ही इतना हद। कहीं वह मसल नबन जायेदविधा में दोनों गये, ममता मिली न राम । कौन कहता है कि पंचम काल में मोक्ष नहीं। विदेह क्षेत्र में पहुँच कर मुनिवत धारण करके मोक्ष नहीं जा सकते क्या ? AL HIST तो यार, नहीं लौटेगा घर SAMITTuynataka Latema Hy नहीं न हरगिज नहीं, हद निश्चय है यह मेरा 23

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