Book Title: Rup Jo Badla Nahi Jata
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 13
________________ जो मैं बहुत दिनों से सोच रहा था वह अवसर अब आ गया। अब तक मैंने औरों के लिये वेष धारण किये। अब यह अन्तिम वेष अपने लिये बनाऊंगा। अब मैं वह वेष धारण करूंगा जिसके बाद और कोई वेष ही धारण नहीं करना पड़ेगा। अब हमारे बड़े पुण्य का उदय आ गया है। बस कर्मों को काट कर मुक्ति के पात्र बनने का सौभाग्य मिल जायेगा इसी वेष के द्वारा । तो बेटा इसमें हर्ज क्या ब्रह्मगुलाल घर आये। माता पिता पत्नी सभी चिन्तातुर थे न मालूम राजा क्या दंड दे डाले । बेटा, राजा ने तुम्हें बुलाया था, क्या कहा उन्होंने ? वह क्या दंड देने जा रहे हैं? हम तो बहुत परेशान हैं । पिताजी, राजा की आज्ञा हुई है कि मैं दिगम्बर मुनि का रूप बनाऊं और उनको उपदेश देकर शांत करूं । हर्ज तो बिल्कुल नहीं पिता जी । परन्तु यह ऐसा रूप है जो एक बार रख कर बदला न जा सकेगा। आप फिर मुझे घर में रहने के लिए तो नहीं कहेंगे ?

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