Book Title: Rup Jo Badla Nahi Jata
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 21
________________ HEA तूतो मेरे जिगर का टुकड़ा है। कितने लाइप्यार बेटा, तेरी भरी जवानी से मैंने तुझे पाला। अब क्यों मुझे छोड़कर जाता हैकुछ दिन और रहले है? घर में कहां यह तेरा कोमल शरीर और कहां यह कठिन तपस्या। और ग़जब तोयह हो. गया कि तू अपनी कोई निशानी भी तो नहीं छोड़कर जा रहा है, मेरा कोई पोता भी तो नहीं है जिसको देखकर मैं तेरा दुख भूला सकू। जवानी में ही तो आत्मकल्याण किया जा सकता है। बुढ़ापा तो अर्ध मृतक के. समान है।धर्म में चित्त को लगाओ। येसंग साथी सब स्वारथ के हैं, इनका मोह छोड़ो औरसुरखी होलो। 15 .-.. NIHII NION कौन किसका पुत्र कौन किसकी माता। अनन्तों बार नजाने में किस | किसका पुत्रबना-परन्तुहरनार ही उन्हें छोड़कर जाना पड़ा। मिलना बिछड़ना यह इसजग कीरीति है,फिरदुख क्यों प्राण नाथ,यह क्या? आपने तो कसम खाई थी कि जीवन भर मेरा साथ निभाओगे, फिर मंझधार में छोड़कर कहां चले। अब मुझे किसका सहारा है? यहां कोई किसी को शरण दे ही नहीं सकता। अपनी ही शरण लो। सुख मिलेगा। स्त्री पर्याय बड़ी निन्दनीय है, इसको काटने का उपाये करो। धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा। n - 19

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