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उन्होंने तो आज्ञा दे दी
मुझे ये छोड़ के जायेंगे भी कैसे। लौट कर अवश्य चले आयेंगे। वेष ही तो बना रहे हैं, कोई सचमुच के मुनि
थोड़े ही बन रहे जैसा आप उचित समझे
रात्रि में... ब्रह्मगुलाल लेटे हैं, सोच रहे हैं... यह संसार, शरीर,भोग सब क्षणभंगुर है, विनाशीक है। जीव अकेला आता है। अकेला जाता है,अकेला ही सुख दुख भोगता है। कोई किसी का संगी साथीं नहीं। मुनि दीक्षा लेकर आत्मकल्याण करने में अब देरकरने से कोई लाभ नहीं। सोच विचार कैसा । अवसर भी अच्छा मिल गया है, क्यों न इसका पूरा-पूरा लाभ उठाऊं। बस अब
यह मेरा अन्तिम रूप ही होगा| अब
देर क्यों?
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करें
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प्रात:काल स्नान आदि करके ब्रह्मगुलाल मन्दिर जी गये, भगवान को नमस्कार किया, पूजा की स्तुति की...
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