Book Title: Rup Jo Badla Nahi Jata
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 18
________________ छः महीने बाद... पीछी कमण्डल लिये, नीची निगाह किये, भूमि को निरखते एक मुनिराज राजदरबार में पधार रहे हैं। राजा आदि उठकर नमस्कार करते हैं। और मुनिराज को उच्चासन पर बैठाते हैं। KATNA . AV/ प. महाराज मैं आपके दर्शन पाकर आज धन्य हो गया। मैं पुत्र शोक से संतप्त हैं। कृपया मुझे शातिका उपदेश दीजिये राजन , यहां कोई किसी का नहीं। कौन किसका पिता, कौन किसको पुत्र। सब आकर यहां मिलजाते हैं और अपने-अपने समय पर सब जहां-जहां जिसे जाना होता है चले जाते है। फिर किसी के चले जाने पर शोक क्यों? शान्त हो जाओ राजन जो आया है नियम से जायेगा। जो मिला है अवश्य बिछुडेगा जब वस्तु स्वरूप ही एसा है फिर दुख क्यों? अब तो आत्मकल्याण में लगो। सुना नहीं आपने "राजा राणा छत्रपति,हाथिन के असतार। मरना सबकेा एक दिन,अपनी-अपनी बार।। AL P प्रजन

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