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रत्नसागर. में। जायै पाप प्रपंच ॥१३॥ ( न० ) प्रथम नरक लगि जाय असन्नि यो। गोह नकुल तिम बीय । गृध्र प्रमुख पंखी त्रीजी लगे। सीह प्रमुख चो थीय ॥ १४ ( न० ) पंचमी नरकै सीमा सापणी । उही लगि स्त्री जाय। सातमीये माणस के माउलो। ऊपजै गरजज आय ॥ १५ ॥ (न०) न रक थकी आवै बिहुँ दमकै । तिरयंच के नर थाय । ते पिण गरज ने परयापता । संख्या ती जसुप्राय ॥ १६ ॥ (न) नारकियांने नरकथी नीसरयां । जे फल प्रापत होय । नत्कृष्टे नांगै करि तेकहुं । पिण निश्च नही कोय ॥ १७॥ (न०) प्रथम नरकथी चवि चक्रवर्ति हुवे । बीजी हरि बलदेव । तीजी लगि तीर्थकर पद लहै । चोथी केवल हेव ॥ १८ ॥ (न०)पंचमी नरकनो सरव विरति लहै । नही देस विरत्त । सातमीन रक नो समकित हीज लहै । न हुवै अधिक निमित्त ॥१९॥ (न०॥ ढाल ३)॥ * ॥ (करम परीक्षा करण कुमर चल्यो रे) ए चाल ॥8॥ मानव गति विण मुगति हुवै नहीरे। एहनो इम अधिकार । आऊ संख्या ते नर सहु दंगकरे । आवी लहै अवतार ॥२०॥ (मा०) तेक वाऊ दमक वेतजीरे। बीजा जे बावीस । तिहाथी आयाथायै मानवीरे। सुख सुःख कर्मस रीस ॥ २१॥ (मा०) नर तिरयंच असंखी आनखैरे । सातमी नरकना तम । तिहां थी मरनें मनुष्य हुवै नही रे । अरिहंत भाष्यो एम ॥ २२ ॥ (मा० ) वासुदेव बल देव तथा बलीरे । चक्रवर्तिने अरिहंत । सरग नर गना आया ए हुवेरे । नर तिरथी न हुवंत ॥२३॥ (मा०) चौविह दे व थकी चवि ऊपरे । चक्रवर्ति बल देव । वासुदेव तीर्थकर ए हुवै रे। बैमानक थकी बेव ॥ २४ ॥ (मा०) ( ढाल ४ नानि अने मरुदेवा) ए चाल ॥ ॥ हिव तिरयंच तणी गति आगति कहीये अशेष । जीवनमें इण परजव मांहें करम विशेष । आऊ संख्याती जे नर तिर्यच विचार । तेस गला तिरयंचा मांहें लहै अवतार ॥२५॥ जिण तिरयंचां मां हे आवै नारक देव । ते कह्या पहिली तिण कारण नकहुं हेव । पंवेंद्री तिरयंच संख्यातं आकर जेह । ते मरी चिहुं गतिमां जावे इहां नही संदेह ॥ २६ ।। थावर पांच तीने विकलेंद्री पाने कहावे । तिहाँ थी मानसंख्याता नर ति