Book Title: Ratnasagar Mohan Gun Mala
Author(s): Muktikamal Gani
Publisher: Jain Lakshmi Mohan Shala

View full book text
Previous | Next

Page 749
________________ ७३७ - श्रीपंचपरमेष्टी पूजा. करे तुम्ह नितवरणं ॥ श्री० ॥ नवनिध अडसिध मंगलमाला। पूजत जगमें जस बरणं ॥ श्री० ॥९॥ ॥ॐ शी परमात्म० शकलपाठक राजाय ऽष्ट द्रव्यंय० ॥ इति पाठक पदपूजा॥४॥3॥ ॥ * ॥ अथ पंचमी साधु पदपूजा॥8॥ ॥ दूहा ॥ पंचमपदमें सोनता। साधु सकल गुणवंत । गुण सतवीस विरा जता। महिमावंत महंत ॥१॥ स्यामबरण मुनिवर कह्या । तप करवा अति सूरि । नविक कमल प्रतिबोधता। धरता निरमल नूर ॥२॥ ॥१॥ ॥॥ ढाल ॥ सदा सहाई कुसल सू०॥एचालसिदा सहाई वीर पटोधर। मुणियो नविक नदार ॥ जलाजी ॥ मु०॥ सुधर्म स्वामी अंतरजामी। तमु नंदन सुखकार ॥०॥ जंबूआदिक गुणके सागर । तेप्रणमुं हितकार ॥ ज०. स० ॥१॥ प्रनवादिकसय पांच नदारा। प्रतिबोध्या सुखकार । ०। सिङनव आदिक जे सूरि । तेहना शिष्य सुविचार ॥ज । स० २॥ थूलनद्र मोटो ब्रह्मचारी। उकरकरकार । न । सिंहगुफावासी जेमुनिवर । नाषे उक्कर कार ॥ ज० स०.३॥ वज्र कुमार बमे नपगारी । प्रतिबोध्या नर नार। । श्रीसिघसेन दिवाकर स्वामी। राखी जगमें कार ॥ ज० स०४॥ विक्रम आ दिक नृप अठार । प्रतिबोध्या सुखकार । न । एकतीरथकुं परगट करके। गुरुचरणां व्रतधार । न०स०॥५॥ देवढिगणी ए सबमें मोटा । राख्यो झा नज सार॥०॥सूत्र ताडपत्रे लिखराख्या। जेशलमेर मझार नस०॥६अन्न यदेव सूरी नपगारी। नव अंग टीका कार । न०। हेमाचारज है बमनागी जिणकीनो हेमनोनार। न०।७॥ कुमार-पालने जिण प्रति बोध्यो। सा खीधरमनो राख । न० श्रीजिनदत्त सूरीसर मोटा। श्रावक किया सवा लाख । ज० स०८ ॥ रतन प्रनु सूरी नपगारी । ओस्यानगर मकार । ज०। सवंसकी थापनाकरके । मोटो कियो नपगार । ज० स०॥९॥ इत्यादिक गुण गणके दरिया । सेवो नविक नदार ॥ ज० ॥ ढंढणादिक महातपसूरा। नामलियां जयकार । न० स०॥१०॥ गजसुकुमाल महामु निवंई। जावकरी इकतार । । धन धन्ना अरु शालनद्रजी। कीनीकर पीसार । ज० स० ॥ ११॥ खंधकसूरिना शिष्य पांचसै । सूरवीर व्रतधार

Loading...

Page Navigation
1 ... 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846