Book Title: Ratnasagar Mohan Gun Mala
Author(s): Muktikamal Gani
Publisher: Jain Lakshmi Mohan Shala
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७८६
रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.
रुचरणे वै । त घर मंगल माल ॥ १ ॥ ( ढाल ) ॥ * ॥ सरल सुगंधित तंडुल नल जल उत्पन्न । ज्यूंवर मोती मात्रा हुंती नऊलवन्न । जलधोई ससमोई सोई प्रकृत नव्य । स्वस्तिक कुशल वधावै पावै मंगल नव्य ॥ २ ॥ ॥ * ॥ ी श्री श्री जिन कुशल सूरिगुरुः चरणकमलेभ्यः । प्रकृतं निर्व पामि ते स्वाहा ॥ * ॥ इति प्रकृतपूजा ॥ * ॥
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॥ * ॥ दीप पूजा ॥
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॥ * ॥ कंचन मणिमय रत्ननी । दीवी कर घृतपूर । वाती मौजी सूत धर । करौ प्रदीप सुनूर ॥ १ ॥ (ढाल ) ॥ * ॥ कंचन घटित जटित गति नानाविध नवरत्न | दीवी प्रतिकारीगर कीवी अधिकै यत्न । घृतपूरी सस नूरी मौली वाती जोय । दीप करै गुरु आगे ज्योत नद्योती होय ॥ २ ॥ ॥ * ॥ ी श्री श्री जिन कुशल सूरिगुरुः चरण कमलेभ्यः दीपं निर्व पामि ते स्वाहा ॥ * ॥ इति दीपपूजा ॥ ॥
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॥ * ॥ धूप पूजा ॥ ॐ ॥
॥ * ॥ बावन्ना चंदन अगर । सेल्लारस घनसार । धूपै जे गुरु धूपथी तस घर रिध विसतार ॥ १ ॥ ( ढाल ) ॥ ॥ अगर चंदन सेवारस बाम बमीलो मेल । कपूर काचरी वलि घनसारै मृगमद जेल । धूप डंग करी गुरु धूपै चढते चित्त । ते नरवित्त सुमारग पामैं नव नव नित्त ॥ २ ॥ ॥ ती श्री श्री जिन कुशल सूरिगुरुः चरण कमलेभ्यः धूपं निर्व्वपामिते स्वाहा ॥ इति धूपपूजा ॥ ॥ ६ ॥ ॥
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॥ ॐ ॥ नैवेद्य पूजा ॥
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॥ * ॥ साल दाल पकवान घन । व्यंजन नव नव प्रांत । नेवज गुरु आगल ठवै । कुधा दोष नपसांत ॥ १ ॥ ( ढाल ) ॥ ॥ पेमा मगद सेवइया लाडू मोतीचूर । खाजा ताजा लापसी दोठानें घृतपूर । पिस्ता दाख विदाम बुहारा पिंमखजूर । गुरुचरणे जे ढोवै लोग जहै भरपूर ॥ २ ॥ ॥ ॥ ी श्री श्री जिन कुशल सूरिगुरुः चरण कमलेभ्यः नैवेद्यं निर्व पामि स्वाहा ॥ ॥ इति नैवेद्यपूजा ॥ ७ ॥ ॥
॥ ६ ॥

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