Book Title: Ratnasagar Mohan Gun Mala
Author(s): Muktikamal Gani
Publisher: Jain Lakshmi Mohan Shala

View full book text
Previous | Next

Page 818
________________ ८०६ रत्नसागर. पुलाई ( जीया हो ) | ( ना० ) ॥ ३ ॥ घस केशर नरकै कचोली । मां है मृगमद कुंकुम घोली । गुरु पूज रचो नरकोली (जीया हो ) | ( ना० ) ॥ ४ ॥ श्री जिन हर्ख सूरी सर राजा । वाज़ै जग जशना वाजा । सत्य रत्न करै सुन काजा ( जीया हो ) | ( ना० ) ॥ ५ ॥ इति स्तवनम् ॥ ॥ ॥ (राग केरवो ) ॥ ॥ ३ ॥ ४ ॥ ५ ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ कुशल सुरिंद गुरु पूजो नवि हितसुं (कुश० ) केशर चंदन कपूर अरगजा । नाव घरी करो पूजा चितसुं ॥ ( कु० ) ॥ १ ॥ मोगरा लाल गुलाब मालती । मनसुध माल करै नवि रुचिसुं ( कु० ) ॥ २॥ शरण शरण परम गुरु सेवो । धरम ध्यान धरो आतम रुचिसुं ॥ ( कु० ) ॥ सेवक जन प्रतिपाल जगत् गुरु । आसापुरै गुरु घणु दत्तसुं ॥ ( कु० ) ॥ ध्यान सुधारे ग्यानवधारे। रूप रंग देवे चित हित मतसुं ॥ ( कु० ) ॥ कुशन सुरिंद गुरु सानिध कारी । परतिख परचापूरै सतसुं ॥ ( कु० ) ॥ ६ ॥ श्री जिनहख सदा सुविलासी । सत्यरतन सुख एही बतसुं ॥ ( कु० ) ॥ ७ ॥ ॥ * ॥ ( राग देवश्री चलत ) ॥ ॥ * ॥ प्राज करोरे नचाह । श्री जिनकुशल सूरिंद मागे । ( प्रा० ) आयबी वेलानैं न प्राबो दाव । इ बी वेला क्यूं करो लाज ॥ (०) ॥ १ ॥ विविध प्रकार पूजो मनरंग । हिल मिल गावो साजन संग ( ० ) धूप दीप करो नैवेद्य सार । फुल वारीनो नहीं जिहां पार ॥ (० ) ॥ २ ॥ प्रत श्रीफल ढोवै जेह । पुत्र कलत्र पां संपदा तेह ॥ ( प्रा० ) ॥ ३ ॥ सुर नर नारी ऊना करै जोग। कौण करै झांरा दादाजीनी होम ॥ (० ) ॥ ४ ॥ श्रीखरतर गपति सिरदार। राजा राणा सेवै इकतार ॥ (० ) ॥ ५ ॥ महिर निजर करो श्रीगुरुराज । कुशल सुरिंद गुरु गरीब निवाज ( ० ( ॥ ६ ॥ श्री जिन हर्ख करे नहरंग । सत्य रतन मन ग्यान नम ग ॥ (० ) ॥ इति स्तवनम् ॥ ॐ ॥ ॥ * ॥ ॥ * ॥ ॥ * ॥ ( राग वंगालो घाटो ) ॥ * ॥ ॥ ॐ ॥ में निरख्या गुरु महाराज । बतीयां हर्खजरी (में० ) अमल अनंत गुण आगरुरे । समता रसनो धाम | परम परम परमातमारे । वंदित

Loading...

Page Navigation
1 ... 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846