Book Title: Ratnasagar Mohan Gun Mala
Author(s): Muktikamal Gani
Publisher: Jain Lakshmi Mohan Shala
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श्री दादाजी स्तवनसंग्रह. दीगं सुखपावै हो (गा.)॥४॥ केशर घस जरिय कचोली। मांहें व लि मृगमद घोली हो (गा)॥५॥ पूजो पग नीर पखाली। गावो गुण गीत रसाली हो (गा०)॥६॥ दादौजी पुखियां सुख देवै । निरधनियां नित धन देवै हो ( गा० ) ॥७॥ हय हाथी रथपति बहुला । गुरु नांमें पामें कमला हो (गा०) ॥८॥ सकजासुत सुंदर नारी। पामें परि कर सुखकारी हो (गा) ॥९॥ अलगांथी रोग गमावै । गुरु पूज्यां वं मित पावै हो (गा० ) ॥१०॥ पावै गुरु तिसियां पाणी । तिणवेला ज लधर आणी हो (गा० ) ॥११) ग्रहगोचर जोर जंजालै । पीमा हुवै आलै माले हो (गा०)॥१२॥ वाजै जगजशना वाजा। राजै खरतरग ब राजा हो (गा०) ॥१३॥ जसु जैत सिरी वरमाता । जिल्हागर मं त्रि विख्याता हो (गा० ) ॥१४॥ संवत सतरैसे इक्यासी। काती पूनि म परकासी हो (गा० ) ॥१५॥ सहु संघ सहित सुविलासै । अधिके हर हेत नव्हास हो (गा० ) ॥१६॥ इम यात्र करी आणंदै । जिन . भक्ति जती सर वंदै हो (गा०)॥१०॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ ॥
|| पुनः (राग धन्यासरी)॥॥ ... ॥ ॥ आयो आयो जी समरंतां दादोजी आयो। संकट देख सेव क कुं सदगुरु । देरावरतें ध्यायो जी समरंतां (दा० ) दादा वरसै मेहनें रात अंधेरी। वायपिण सबलौ वायौ । पंच नदी हम वैठे बेमी । दरीयै हो दा दादरीयै चित्त मरायो जी॥ (स० दा०)॥२॥ दादा नच्च नणी पो हचावण आयो । खरतर संव सवायो । समय सुंदर कहै कुशल २ गुरु । प रमानन्द सुख पायो जी । समरंतां दादोजी आयो ॥३॥इति पदम् ॥
॥ ॥ (राग लहुरी)॥ ॥ ॥ ॥ जाया नक्तिसुं पूर रहोरे । पुरजन सब दूरहरोरे (ना.) मैरे मनमें भक्ति वैरागी। चित्त परणित लगनसुं लागी। मोरी जाग्यदसा अब जागी॥ (जीया हो)॥ (ना.)॥१॥ सब सजान मिलकर आवो । गुरु चरणे चोक पुरावो । बलि अदत धवल वधावो (जीया हो)॥ (ना.) ॥२॥ गुरु महिमावंत सवाई । गुरु नाम सदा सुखदाई । गुरु सेव्यां पाप

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