Book Title: Ratnasagar Mohan Gun Mala
Author(s): Muktikamal Gani
Publisher: Jain Lakshmi Mohan Shala

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Page 815
________________ श्री दादाजी बंद, स्तवन ८०३ या रहे जे ध्याने राता। सुप्रसाद सोम सुंदर सुगुरु । अनय सोम लग करी। प्रगटियो थुन पाली पुरे । विजे सिंघ लीलावरी ॥३०॥ इति ॥ ||| अथ श्री दादाजी वृद्धस्तवन | ॥*॥ सदगुरुजी थे सांजलो। श्रीजिन दत्त सूरीसहो। सेवकने सांनिधक रो। पूरोमनहजगीसहो॥१॥ (दोलतिदोहोदादाजी संपतिदो)। दौलतदोगुरु माहरा । थाहरा विरुद्ध अनेकहो । तोसेव्यां संकट टले । एहीज दादा ताहरी टेकहो॥२॥ दौ०॥जीती चौसठ जोगिणी। वसकीया बावन वीरहो। सिंध मां है तें साधीया। पंचनदी पंच पीरहो॥३॥दौ०॥पमिकमणां मांहे बीजली। वलीय वली ऊब कायहो। थे मंत्री राखी तिका । तूठी वरदेजायहो ॥ ४ ॥ दो० ॥ नबव करतां उच्चमें । मूंगो मुगलरो पूतहो । जापकरी जीवामीयो। संघ माहै राख्यो दादै सूतहो॥ ५॥ दौ॥ व नगररे ब्राह्मणें । देहरै ध री मृत्यु गायहो । पंच मरमेष्टि विद्याबले । पिसुण लगाया दादै पायहो ॥६॥ दो० ॥ विक्रम पुर व्यापी मरी । तै दूरकीया सहु मुख हो । परवार पिण पोते कीयो । सहुनें दीधौ दादै सुःखहो ॥७॥ दौ०॥ अंबम हाथे अख्यरै । थे प्रगट्या तत खेवहो । युग प्रधान जग तुं जयो। आखै अंबिका देवहो । ॥८॥दौ०॥थांनो वज्र विदारनें । पोथी परगट कीधहो । विद्या सोवन अहरें । नऊोणी मां है लीधहो ॥ ९॥ दो० ॥ इम विरुद घणा ताहरा. कहितां नावै पारहो । नाग संजोगै दादौ नेटीयो । अमवमीयां आधारहो।। ॥ १०॥ दौ०॥ हुईं सेवक ताहरौ ।थे आपो धनरिघहो । नुवन कीरति सु पसावले । लान नदै सुख सिघहो ॥ ११॥ दौ०॥ इति श्री दादाजी गीत।। ॥ I (पुनः) राग जैतसरी॥॥.. ॥ ॥ सहाई मेरै श्रीजिन कुशल गुरू । कुशल करण कलि मां है प्रग ट्यो । खरतर गवरू (स०) बावनो चंदन मृगमद मेली । पूजो प्रेमनरू ॥ (स)॥१॥ चिंता चूरण विघ्न विमारण । दालिद्र दूर हरू ॥ (स.) ॥ २॥ दिन दिन साहिब चढितै वानें । ध्यावो ग्यान धरू ( स० ) वाजे जेहना जशना वाजा । गवी गंमै जरू ॥ (स० ) ॥३॥ संबत् अ ढार समें अमस । मिगसर मास थिरू (स.) संघ सहित श्री सदगुरु

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