Book Title: Ratnasagar Mohan Gun Mala
Author(s): Muktikamal Gani
Publisher: Jain Lakshmi Mohan Shala
View full book text
________________
८०२
रत्नसागर..
क्ख ॥ ११ ॥ वमा विरुद ताहरा विख्यात । नर नारी सहु यावे जात । गुर्णेकर गिरुवो समुद्र सरीस । कोमें कोई नकरज्यो रीस ॥ १२ ॥ ( दूहा) रीस न करज्यो कवियणां । में माहरी मतिजार । कहीयो जगमें कुसल गुरु खरतर गब सिणगार ॥ १३ ॥ ( बंद नाराच ) सिणगार हार सोहए। सुकांमधे नु दोहए। धरंत ध्यान जो सदा । टवंत दूर आपदा ॥ १४ ॥ प्रथम तो देरानरै । सुथान सिंधुथीवरै । जेशाण थुत्र जागतो । सुदिध संघ साबतो ।। ॥ १५ ॥ मुखतान मीर सेवता। अनेक पीर देवता। किरो हरें फतै पुरै । गुरू सदा नदो करे ॥ १६ ॥ मरोट थांन मूलगो। एकांत चित्त गो । बीकांण वांन वाधतो । सुथांन थांन साबतो ॥१७॥ प्रजावना रिणीपुरै । नीसा ण वाजता घुरै। नागोर नांम दीपतो । दाशव देवजीपतो ॥ १८ ॥ तोरण तेम सोह ए। जगत्त मन्नमोहए । सरूप मे तै सही । अपार नही जां नही ॥१९॥ महिम्म मालपूरतो । लाहोर दुःख चूरतो। कला अनेक प्रागरे । बत्तीस पवनऊरै ||२०|| दादारी करत सेव । हिंदुओं तुरक्कां देव | सदा शुद्ध सांगा नेर । जालमी करत जेर ॥ २१ ॥ अमरसरे अनेक । राखतो जुठो टेक । मालपुरे मझिमान । खान खान सेवै थांन ॥ २२ ॥ ब्राहणपुरै राजरीत । जे तारणें जगत्रजीत । सोजित सुख सहयं । वेनातटे विरुदयं ॥ २३ ॥ खे जमलै खरो सदा। बाहरु मेरु संपदा । जोधाण जुग्ग जातरा । जुरुंति देश देशरा ॥ २४ ॥ वीरम्मपुर तिम्मरी । करंत नृत्य अम्मरी । जालोर जैत सिंघरी । खंजायते खराखरी ॥ २५ ॥ प्रगट्ट आप पाटणें । सूरत सुक्ख सांघों । अनन्त तेज अहम्मदा । सुमङ्गलोर सर्वदा ॥ २६ ॥ साचोर जु ऊ सासतो। तुरत शत्रु त्रासतो। नदैपुरै जु ईमरे । सेत्रावे कोटले गुरै ॥२७॥ गुरू सदा नदो करै । एकांत ध्यान जो धेरै । जमंत नांण जेतली | कीरत कोम तेती ॥ २७ ॥ ( दूहा ) कला अनेकां कुशल गुरु समरयां होय हजूर । अलगी टाले आपदा । जिम अंधारे सूर ॥ २६ ॥ (कलश) सूर तेज जिम नूर | दूर प्रापद जय टालै । माईतां ज्युं मयाकरी । सेवक नित प्रतिपालै । मनवंबित मायबाप । कुशल गुरु कामिता दाता । पूनिम पूजै पा

Page Navigation
1 ... 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846