Book Title: Ratnasagar Mohan Gun Mala
Author(s): Muktikamal Gani
Publisher: Jain Lakshmi Mohan Shala

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Page 809
________________ श्री दादाजी आरती, बिलशैरुवि, बंद. ७९७ ॥ राग आसावरी ॥ अथवा धन्या श्री ॥ पूजन जग सुखकारी । मुगुरु ते | पूज० | तेरे चरण कमल बलिहारी । सु० । साह सम दिल्लीको बादस्या सुशोतिहारी । ट्ट हरायो चरचा करके । जहारक पद धारी । सु०१ ॥ अम्मावश की पूनम कीनी। चंद नगायो जारी । चढके गगन करी हे चरचा । सूरज से तप धारी । सु० ॥ चौदे से नगणीस शाल में । लखनेन नगर मजारी गोरा फिरंगी टोपीवाला । दिलमें यह बात विचारी । सु० ३ | जैन सितंबर देव जो सच्चा। पूरे मनसा हमारी वाणी निकसी राज्य तुमारा । होवेगा इधकारी ॥ सु० ४ ॥ अंधेकी खोली आंख सूरत में पूजे सब नर नारी । कह जग गुण बरं मे तेरा । तूं ईश्वर जयकारी ॥ सु० ५ ॥ उगणी से संवत्सर तेपन । मिगसर माश मऊारी । शुकल दूज जिन चंद सूरीशर । खर तर ग आचारी सु० ६ कुशल सूरि के निज संतानी । क्रेम कीर्त्ति मनुहारी । प्रति बोध्या जिन सूत्री पांचसे । जांन सहित अणगारी ॥ सु० ७ ॥ म धान शाखा जब प्रगटी । जग में आनंदकारी । धर्मशील साधू गुण पूरे । कुशल निधान नदारी ॥ सु० ८ ॥ या पूजन करतां सुखानंद । अन धन जखमी सारी । कहत राम रुविशार गुरुकी । जय २ शब्द नचारी ! सु० ९ ॥ इति श्री समस्त दादा गुरु पूजा संपूर्ण ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ सद्गुरूणां भारती लि० ॥ ॥ ॥ * ॥ पहली आरती दादाजी की कीजै । दुःखदोहग सब दूर हरीजै । ( जैजै सद्गुरु आरती कीजै ) श्रीजिन दत्त सूरि समरीजै । ( जै जै ० ) ॥ १ ॥ बीजी बीज पर्यंती धारा । जयवारण तूंही सुखकारा (जै० ) ॥ २ ॥ तीजी परचा पूरक तेरी । दूर हरो सब दुर्मति मेरी ( जै ) ॥ ३ ॥ चौथी मुगलपूत जिय दायक | सुरवर हुकम धेरै ज्युं पायक ॥ ( जै० ) ॥ ४ ॥ पांचमी पांच नदी जिए तारी। संघ सकलनो संकट वारी ( जै० ) ॥ ५ ॥ बडी थांनो वज्र विदारी । विद्या पोथी परगट कारी ॥ ६ ॥ सातमी चौसठ जोगण साधी । सूरिमंत्र सुरनें आराधी ॥ ॥ ७ ॥ इण विध सात आरती कीजै । मनवंबित संपति फल लीजै ॥ ( ( जे० ) ॥ ॥ (जै० ) जै० ) ॥ 63

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