Book Title: Ratnasagar Mohan Gun Mala
Author(s): Muktikamal Gani
Publisher: Jain Lakshmi Mohan Shala
View full book text
________________
७६८ रत्ननसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह.. नगणीसै चालीशमें हे माय । स० । पोश माश सुखकार नगत कर ना वसुं हे माय । न०॥स०॥७॥ संघ सहू हरणे करी हे माय । सं० । पूज रची चितचाह वंचित सब पांमिया हे माय । वं० ॥ स० ॥८॥धरम विशाल दयालनो हे माय । स । सुमति कहै मन रंग सकल गुण दी जीये हे माय । स० ॥स ॥ ९॥ इति सहसकूट जिनस्तवनं ॥१॥
॥ ॥ अथ सहसकूट स्वरूप, विधिः॥ * ॥
॥ पांचनरत । ५ ऐवत ॥१० देत्रोंमें । अतीत, अनागत, वर्तमा न तीनों कालकी अपेक्षायें ३० चौवीशी होय (अंके) ७२० हुवा । ( तथा) ५ महाविदेहके एकसो आठ विजयमें १६० जिन होय (८८०) (तथा) २४ नगवानका १२० कल्याणक स्वरूप ( अंके १०००.) (तथा ) ५ महाविदेहमें २० विहरमान ॥ ४ शाश्वता जिन ( एवं सर्व १०२४ जिन स्वरूप ) को सहसकूट कहते है । सहसकूटजीको मंदर सिधगिरी तीर्थाधिराजके ऊपर, मूल नायकजीके पासमें अत्यंत मनोहरहै । (इसकी) नत्कृष्टनांगे प्रत्येक महाराजकी। प्रत्येक द्रव्यसें पूजन नव क रना होय (तो) आठदिन अहाई महोइव करै । रोकनाणो । नालेर, सुपारी विदाम, वस्त्र, दीपकादि, प्रत्येक द्रव्य १०२४ एकहजार चोवीश२ चढावै । इतनी शक्ति न होय तो यथाशक्ती महोत्सव साथ पूजा विधि गुरूके मुख में जानके करे॥ * ॥ इति सहसकूट पूजन विधिः ॥ ॥
॥ ॥ अथ पांचग्यान पूजा लिख्यते ॥ * ॥ ॥ ॥ ( दूहा )॥वर्षमान जिनचंदकुं। नमन करी मनरंग। पूज रचुं नवि प्रेममुं । सांजलजो नारंग ॥१॥ पांचज्ञान जिनवर कह्या।म ति श्रुति अवधि प्रधान । मनपर्यव केवल बडो। दिनकर जोत समांन ॥२॥ झानबमो संसारमें । गुरु विन झांन न होय । झानसहित गुरु वंदियै। सु चिकर तन मन होय ॥३॥ बीर जिणंद बखाणीयो । नंदीसूत्र मझार। न व्य सदा अनुन्नव धरो। पावो सुख श्रीकार ॥ ४॥ निरमल गंगोदक जरी। कंचन कलश नदार । श्रुतसागर पूजनकरो। नाव धरी जविसार ॥ ५ ॥ चितहरखधरी अनुन्नवरंग वीश परमपदसेविये ( ए चाल ) मति अ

Page Navigation
1 ... 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846