Book Title: Ratnasagar Mohan Gun Mala
Author(s): Muktikamal Gani
Publisher: Jain Lakshmi Mohan Shala

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Page 795
________________ लक्ष्मीमोहन स्तवनसंग्रह. ७८३ परगटहोय तनमें । सहुजगजाणहोवे इकग्निमें ॥ ज्ञान ज्ञान निजज्ञान, सुनध्यान करध्यान ॥ आ० नि० १॥ दोष अष्टादश रहित केवलयुत, नविजन धर्मसुनावे । लक्ष्मीप्रधान मिलै शिवसंपद, मोहन जय सु खेपाय सहुजगमें ॥ गुणगान, स्वरजान, परतान, लहैमान।।आत्म०नि०॥ ३॥ इतिश्री नमिजिनस्तवनम् ॥ * ॥ ... ॥ ॥सांवलियाजैसेंवने तेसेंतारो॥॥ ॥ ॥ श्राजमोरी अरज शीतलजिन धारो, मेरो जनम मरण पुःखदारो॥ आ० टेक॥ कालअनादि जम्यो नव वनमें । कुमति नार मो हजारो । नरक निगोद देवनर नवकर । बहुविध नाटककारो ॥ प्रा० १॥ पुन्यसंयोग जैनागम वचनें । दरशनगुण हितकारो। गुरु मुख तारक ईश्वर तुमकों । जाणसरण सुखकारो ॥ प्रा० २॥ सिघ बुच्च तुं जग परमेसर । परमातम जगप्यारो । ब्रह्मा विष्णु महेश्वर तुमही । तुम प्रनु जगदाधारो ॥श्रा० ३॥ दृढरथ नंदानंद जिनेश्वर । अतिशय सहुगुण प्यारो। शांतिसूरत प्रनुशीतल जिनवर । जविजन हित सुख कारो।। आ० ४॥इंद्रनुवन जिम चैत्य मनोहर । कलिकत्तापुरसारो। श्रीबर फल वद्री प्रनुपावै । मुक्ति. मोहन जयकारो॥० ५॥ इतिपदम् ॥ ॥॥मोरीराजुलराणोजीथांने नमजी मिले इमचालम॥१॥ ॥ * ॥ मोरी सुमता राणीजी, थाने श्रीपतिजी मिले । श्रीपतिजी०॥ श्रीपति मिलवा कारणे सारू । दान शील तप नाव । विधिसें जिनश्रम से वतां । सहु पावे आतम दाव । हे मोरी० १॥ श्रीपतिप्यारी सुमता नारी। दर्शन शान सुहाय । चारित्र निजगुण साथ में सहु । सुख संपति नितपाय ।। हे मो० २॥ विक्रमपुर श्रीकुंथु जिनेशर । चंद नदय अमरेश। श्रीशशि वि जय सुहावणा । सहु सुगुण विद्या श्रीवरेस ॥ हे मो० ३॥ सहु सुखकारी मू रति प्यारी । मुक्ति कमल मन नाय । जिनपद पाठक सेवतां । सहुसंघ मोहन जय थाय ॥ हे मो० ॥ ४॥ ॥ . इति श्रीकुंथुजिन पाठक सहुगुण सेवन स्तवनम् ॥॥ ॥ ॥

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