Book Title: Ratnasagar Mohan Gun Mala
Author(s): Muktikamal Gani
Publisher: Jain Lakshmi Mohan Shala
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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. नितपूजे । लान अनंत नपावै । म्हां । संघपती संघ लेकै जावै । धन २ तेह कहावै । म्हां आ० ५ । पुष्फमाल गुंथी नविनावै। जिनवर पूज रचावे म्हां । सुमतिकहै गिरराजकुं ध्यावे । वंगित सफल लहावै । म्हां आ०६॥ उझी आबूगिरेंद्राय तीर्थसिरोम श्रीआदीश्वराय पुष्पंयजामहे ॥३॥
॥ॐ॥अथ चौथी धूप पूजा॥ॐ॥ ॥ ॥ दूहा ॥धूप दशांग लेई करी। पूजो तीरथ राय । सुरनि सुगंधी महमहैं । इमन्नाखै जिनराय ॥ १ ॥ विमल अश्व वाहन धरी । सेवकरै.. जिनराज । अंबादेवी पूजतां । सफलकरै सबकाज ॥ २ ॥ मैं निरष्या गुरुमहाराज तिां हरखनरी मैं ॥ ए चाल ॥ दिल मैं हरखधरी नविपूजो गिरवर सार ॥ दिल०॥ धूप दशांग लेई करीरे । पूजो जग जरतार । बोधबीज निरमल करोरे । सफलकरो अवतार ॥दि०॥ संघकरी संघ वीघणारे । लेटै श्री गिरसार। अष्टद्रव्य लेई करीरे। पूजै जिन इकतार दिल. ज०२॥अचलगढे जिनराजनारे। मोहन मंदिर च्यार। विमलै साह करावि यारे। धन धन तसु अवतार दि० ज० ३॥ सुंदर मूरत गुण तरीरे। चौमुख प्रतिमा च्यार । साजन मारा थे सुणोरे । नाखू गिरि गुणधार दिलन०४॥ चवदेस चौमालनीरे। मूरत गुण नंमार । हेममई जिनराज नीरे । सोने अ धिक दीदार ॥दिल न०५॥धन जेहनी माता पितारे। धन जेहना कुलसार द्रव्य प्रबल खरची करीरे। लीनो लान अपार ॥ दिन०६ ॥ इणपर ए गिर रायनीरे । महिमा अधिक अपार । मुमतिसदा कर जोमिने रे । प्रणमैं वारंवार । दिल० न० ॥ झी आबूगिरेंद्राय तीर्थसिरोमणाय श्रीया दीश्वराय धूपं यजामहे ॥४॥
॥॥अथ पांचमी दीपक पूजा॥॥
॥ दीपक पूजा पंचमी । करो नविक गुणवंत । दीपक सम गुण पांमिये । केवल ज्ञान अनंत ॥१॥ तीरथनी महिमा करो । जाव धरी मतिवंत । द्रव्य नाव विहुँ दमुं । पूजो नवि विकसंत ॥ २ ॥ तुमविन दीनानाथ दयानिधि कोन खवर ले मेरीरे। ज०॥ एचाल॥ आबू गिरपर आदि जिनेसर । दरसणकी बलिहारीरे। आ० । नगरसीरोही

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