________________
४७६
रत्नसागर.
प्र० ॥ १ ॥ जो कोइ प्रभुजीसें नेह करेगो । शिव पुरनां सुख लेहसेरी ॥ प्र०॥२॥ सेवा राम प्रतू गांव रेशमकी | लगी प्रीति नहीं तूटेरी ॥ प्र० ॥ ३ ॥ ॥ * ॥ राग रामगिरी ॥
॥ ॥ * ॥ रे जीव जिन धर्म कीजीयें । धर्मनाचार प्रकार || दान शीय ल तप जावना । जगमां एतत सार ॥ रे जीव ॥ १ ॥ वरश दिवस पारणें । आदीश्वर अणगार || इकुरस दान वहरावीयो । श्री श्रेयांस कुमार || रे जीव० ॥ २ ॥ चंपा पोल नधामीयां । चालणीयें काढ्यो नीर ॥ शतीय सुभद्रा यश थयो । शीयल मेरु गंभीर ॥ रे जीव० ॥ ३ ॥ तप करी का या शोषवी । रस निरस आहार || वीरजिणंद वखाणीयों । धन ध नो अणगार || रे जीव० ॥ ४ ॥ नित्य भावना जावतो । धरतो निश्चल ध्यान ॥ रत आरसा जुवनमें । पाम्यो केवल ज्ञान ॥ रे जीव० ॥ ५ ॥ जैन धर्म सुरतरु समो । जेनी शीतल बांय ॥ समय सुंदर कहे सेवतां । मन वंबित फल पाय ॥ रेजी० ॥ ६ ॥
॥ ॐ ॥
11 & 11
॥ * ॥ पुनः ॥
॥
॥ * ॥ सोइ सोइ सारी रेन गुमाइ । वेरन निद्रा तुं कहां से आई ॥ सोइ ० ॥ ए प्रांकणी ॥ निद्रा कहे तो बाली रे मोली । बने बने मुनि जनकूं नाखुं रे ढोली ॥ सो० ॥ १ ॥ निद्रा कहे में तो जमकी दासी । एक हाथमें मुक्ती र दूसरे हाथमें फासी ॥ सो० ॥ २ ॥ समयसुंदर कहे सुनो जाइ बनीयां | आप डुबे सारी डुब गइ दुनियां ॥ सो० ॥ ३ ॥ इति ॥ * ॥ ॥ * श्री चंद्राप्रभु स्तवन ॥ ॥
॥ * ॥ चंद्रा प्रभुजीसें ध्यानरे । मोरी लागी लगनवा ॥ चं० ॥ लागील गनवा बोगी न छूटे। जबलग घटमें प्राणरे | मोरी० ॥ चं० ॥ १ ॥ दान शीय ल तप जावना जावो । जैन धर्म प्रतिपालरे || मो० ॥ चं० ॥ २ ॥ हाथ जो कर अरज करत है । वंदत शेठखुशालरे | मोरी ० ॥ ३ ॥ इति ॥ * ॥ ॥ * ॥ श्री बीरजिन स्तवन ० ॥ * ॥
॥
॥ ते मुक्ति पुर गये रहेरे । वारी सकल करम दल खय कर ते ॥ मु० ॥ ए टेक || अविनाशी अविकार हे । परमातम शिवधामरे । समाधान