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चैत्रमास ( ४ ) पर्बाधिकार स्तवन
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को कावसग्ग करे । १० जैतीके ठिकाएँ १० गाथाको स्तवन कहै ।
पीछे अनेक प्रकारका बाजित्र बजावै ॥
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॥ इति प्रथम पूजाविधिः ॥ ॥ ॥ * ॥ (अब इसी तरे ) बीश । तीश । चालीश । पञ्चाश यह च्या पूजाके नेद जान लेना | ( इतनाही विशेष है ) दूशरी पूजामें १० के ठिकाणें २० की विधिकरें ॥ तीसरी पूजामें १० के ठिकाऐं । ३० की विधि करै ॥ चौथी पूजामें १० के ठिकाऐं सब बिधि ४० की करे ॥ पांच मी पूजामें सब विधि ५० की करै । (तथा) सिद्ध क्षेत्र श्रीपुंमरीकाय नमः । इस पदको २००० गुणनो करे। उत्कृष्टसें पांचू पूजामें । जूदी २ धजा चढावै । जघन्यसें पांच पूजा किये पीछे १ धजा चढावै । यह तप । गुरूके मुखसें लेके । जघन्ये १ बरस । ( वेसी होसकै तो ) ७ बरस । न तत्कृष्ट १२ बरस । विधि संयुक्त तपस्या करै । गुरूके मुखसें उपदेश सु
। संपूर्ण तप हुवां पीछे | सिध गिरीकी यात्रा करै । ग्यान पूजा करै । गुरु जती करै । साहमी चल करै । (यह ) चैत्री पूनम के दिन | श्री न देव स्वामीके । प्रथम गणधर श्री पुंमरीकजी। पांचकोमि साधू साथ सुखकों प्राप्तनये (इसीसें ) प्रथम श्रीभरत चक्रवर्त्ति । चैत्री नमको आराधन करके। श्री पुंमरीक गणधर की प्रतमा स्थापन करके । (यह ) चैत्री पूनम पर्व्व प्रसिद्ध किया । यह चैत्री पूनम आराधन करनें सें। इस नवमें अनेक सुख संपदा प्राप्त होय । स्त्रियोंके पुत्र पुत्र्यादिक की बांबा पूरण होय । (र) आधि व्याधि सोग संताप सब दूर होय । परजवमें देवादिक रुविप्राप्त होय । की कर्मी होनेंसें प्रदय सुखको प्रा स होय ॥ इति चैत्र माश पर्वाधिकारः ॥ * ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ अथ चैत्री पूनम स्तवन लि० ॥ * ॥
॥ ॥ (ढाल ) पयप्रणमीरे जिन वरना सुपसानले । पुंकरगिररे गा इसहुं सुत्र जानलै । मति सुरगिररे सहस जीन जो मुख हुवै । किम ते नररे विमला चलना गुण तवै । ( नल्लालो ) किम तबै गुणगण एह गि रिना जिहां मुनि सीधा बहु । गिररायना गुण अनंता कहै जिणवर मु ख सहु । निज जनम सफलो करण कारण केतला गुण जाषियै । तिर