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रत्नसागर.
२७ ॥ संसार स्वरूप जावना जावकाय श्रीप्रा० ॥ २८ ॥ एकत्व स्वरूप भावना जावकाय श्रीप्रा० ॥ २९ ॥ अन्यत्वं आवना जावकाय श्रीमा० ॥ ३० ॥ शुचि भावना जावकाय श्रीमा० ॥ ३१ ॥ श्रव भावना जावकाय श्रीप्रा० ॥ ३२ ॥ संबर जावना नावकाय श्रीप्रा० ॥ ३३ ॥ निर्जरा भावना नाव काय श्री० ॥ ३४ ॥ लोक स्वरूप जावना नाव काय श्री० ॥ ३५ ॥ बोधकुर्लन भावना जावकाय श्री० ॥
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३६ ॥ धर्म्म दुर्लभ भावना जावकाय श्री० ॥
॥ * ॥ यह बत्तीस नमस्कार करिके । अन्नत्थू ससिएणं ( इत्यादि) कहि के । बत्तीस (३६ ) लोगस्सको कानसग्ग करै । एक लोगस्स ऊँचे स्वरसें कहिके पारे । यथोक्त करणी । अनुक्रमसें करे ॥ ॥
॥ * ॥ अथ चतुर्थ दिवश विधि लि० ॥
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॥ ॐ ॥ ( ँझी णमो नवझायाणं ) इस पदको ( २ ) हजार गुणनो करे | हरया मूंग की दाल प्रमुखका बिल करे । नपाध्याय पदके (२५) गुण यादकर के नमस्कार करे ॥ * ॥
॥ ॥ उपाध्यायके (२५) गुण ॥ ॥
१ ॥ आचारांग सुत्र पठन गुण युक्ताय श्रीनपाध्याय नमः ॥ २ ॥ सुयगमांग सुत्र पठन गुण युक्ताय श्रीउपाध्याय नमः ॥ ३ ॥ श्रीठाणांग सुत्र पठन गुण युक्ताय श्रीनरः ॥
४ ॥ श्रीसमवायांग सुत्र पठन गुण युक्ताय० ॥ ५ ॥ श्रीभगवती सुत्र पवन गुण युक्ताय० ॥ ६ ॥ श्रीमाता सुत्र पठन गुण युक्ताय० ॥ ७ ॥ श्रीनुपाशकदशा सुत्र पठन गुण युक्ताय० ॥ ८ ॥ श्रीमन्त गरुदशा सुत्र पठन गुण युक्ताय० ॥ ९ ॥ श्रणुत्तरोवबाई सुत्र पठन गुण युक्ताय० ॥
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