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जैन चित्रकथा हाथों-पाँवों में मेंहदी, पगतलियों में महावर-लाली । अनुपमसुन्दरी। अनुपम श्रंगार।सज्जित राजुल गिरनार पर्वत पर अकेली चढ़ रही है...
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| विजन और चढ़ाई पर राजुलमार्ग में मिलने चारों और सघन वन में राजुल को हिरण,मोर कोयल वाले वनफूलों से ही बातें करती चलती है- आदि पशु-पक्षी दिखते हैं। हेसुमन! तुमसे
तुम्हारे कारणही भीसुन्दर मेरे/
मेरे पति इस पर्वत स्वामी
पर आये है। नेमि प्रभु
तुम्हेंतोपता क्याइसीए
होगा,बतान रास्तेसे
ओ मेरे गये
स्वामी कहाँ
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