Book Title: Rajul
Author(s): Mishrilal Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 17
________________ राजुल राजुल ने एक बार फिर श्रमण नेमिनाथ की और देखा और स्वयं को ही सम्बोधित कर बोलीराजुल। नारीका सच्चा सुख पति के मार्ग पर चलने में है। सुन्दरता सदैव नहींरहती। वासना पाप और राजुल के मुरव पर प्रसन्नता लौट आती है हे श्रमण नमोस्तु। आपकी राजुल ने आपका मौन सन्देश सुन लिया है। 16 | नेमिनाथ श्रमण ने एक क्षण को नयन खोले और बन्द कर लिये -CLES हे श्रमण! अब राजुल भी आपके मुक्ति पथ का पालन करेगी। 15

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