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जैन चित्रकथा धर्मसभा विसर्जित हो गई। तीर्थकर नेमिनाय गिरनार पर्वत से नीचे उतर रहे हैं। पीछे श्रमण | श्रमणियों का समुदाय चल रहा है। साध्वी राजुल भी सफेद सारिका पहने चल रही है।
तीर्थकर लोक कल्याण के लिये भ्रमण करते हैं।
मार्ग में पशु पक्षी अपना बैर भूल कर खड़े दिखते हैं। सिंह के समीप हिरण-गाय तथा सर्प के निकट मोर विचर रहे है। बिना मौसम के फल-फूल पल्लवित हो रहे है
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यह सब पुण्य का फल है। तीर्थंकर के प्रभाव से पशु, पक्षी तक जन्मजात शत्रुता भूल जाते हैं।
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