Book Title: Rajul Author(s): Mishrilal Jain Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala View full book textPage 31
________________ राजुल तीर्थकर जिस स्थान पर साधना रत थे वहाँ नारखून और केश दिरवाई दे रहे है। देह सहसा अदृष्य हो गई। बन्धु यह रोने का समय नहीं है। ( यह क्या कहते हो? HAMAMALNA हा बंधु। प्रभु की आत्मा अमर हो गई। वह जन्म-मृत्यु के बंधन से छूट गये। (ENA 29Page Navigation
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