Book Title: Rajul
Author(s): Mishrilal Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 30
________________ जैन चित्रकथा एक दिन जब तीर्थंकर साधना में लीन थे कि सहसा उनके चारों ओर दिव्य आलोक फैल गया तीर्थंकर नेमिनाथको दिव्य निर्वाण प्राप्त हुआ। वह दिव्य आलोक तीर्थंकर की देह से निकल- जनसमूह, अमण, श्रमणियाँ तीर्थंकर का कर आकाश में उर्ध्वगमन करता जारहा है। जयघोष करते हैं तीर्थकर नेमिनाथ भगवान की जय तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान 40 की जय। O । तीर्थंकर की आत्मा सिदालय की ओरजारहीहै।

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