Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 03
Author(s): Lakshminarayan Dixit
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 13
________________ [ ६ ] या रावजी बीच में ना जमते और लोगों के थोड़ेसे प्राग्रह पर बात की भूमिका बननी प्रारम्भ हो जाती थी । इन बातों को कहने की भी एक विशिष्ट कला है जो स्वयं कथाओं से कम रोचक नहीं है। श्रोताओं का ध्यान आकृष्ट करने के लिए भूमिका बाँधी जाती है जिसमें प्रायः बात से सम्बन्धित भौगोलिक वर्णन अथवा देश विशेष की विशेषताओं का वर्णन रहता है । बात में हुंकारे का बड़ा महत्त्व है । बात कहने वाला पहले से ही श्रोताओं को सतर्क रहने तथा बात में दिलचस्पी लेने को यह कह कर आगाह करता है कि 'बात में हुंकारो ओर फोज में नगारों' । सब की जिज्ञासा को अपनी ओर केंद्रित कर फिर वह मूल बात पर यह कहता हुआ आता है - तो रामजी भला दिन दे, एक समय री बात, फलां नगर में फलां राजा राज करतो हो । प्रादि २ । प्रेम गाथानों की सामान्य विशेषतायें - यह उल्लेख हम पहले कर आये हैं कि कथा - साहित्य में शृंगारपरक कथाओं का विशेष महत्त्व है । यहाँ सम्पादित बातों पर प्रकाश डालने के पहिले इस प्रकार की प्रेम-विषयक वार्ताओं की सामान्य विशेषतानों की ओर संकेत कर देना अनुचित न होगा । इन कथाओं में प्रेमिका के सौन्दर्य का वर्णन अनेक उपमानों, रूपकों और उत्प्रेक्षानों के सहारे किया जाता है । वेश-भूषा तथा हावभाव का चित्रण भी कथाकारों ने पूर्ण रस लेकर के क्रिया है । जहाँ नायिका की कोमलता, प्रेम-लालसा व अलौकिक सौंदर्य का वर्णन किया गया है, वहाँ नायक के शौर्य, शारीरिक गठन, घुड़ सवारी श्रादि का भी बखान किया गया है । उसे यथा-स्थान छैल-छबीला व रसिक - शिरोमणि भी सिद्ध किया गया है। श्रृंगार का सजीव चित्रण प्रायः प्रकृति व महलों की साजसज्जा की पृष्ठभूमि में किया गया है । वियोग और संयोग दोनों अवस्थाओं में नायिका के भावोद्वेलन का वर्णन कहीं-कहीं षट्ऋतुओं के प्रभाव के साथ-साथ हुआ है तो कहीं वमन्त और वर्षा के सहारे । बाग-बगीचे व उद्यानादि उनके मिलन केंद्र के रूप में वर्णित हैं । कहीं-कहीं प्रकृति के उपकरणों पर प्रेमातुर क्षणों में मनुष्यों से भी अधिक विश्वास कर उन्हें प्रेम की सचाई के लिए साक्षी रूप में स्वीकार किया गया है । प्रेम-सन्देशों के श्रादान-प्रदान के लिए जहाँ डावड़ियों तथा दूतियों आदि का सहयोग उन्हें मिलता रहा है वहाँ मालिन, तम्बोलिन व धोबन आदि ने भी पूरा जोखम उठा कर बड़ी चतुराई के साथ उनका काम कर दिया है । उनके शुभचिंतकों की संख्या यहाँ तक ही सीमित नहीं है, पाले हुए मृग, सुग्गे व कबूतर भी अपने कर्त्तव्य से विमुख होना नहीं जानते । अश्व व ऊंट आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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