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[ १८ ]
झारी मंगवाई और अंजली में संकल्प लेकर 'श्रीकृष्णारपुन्य छै' कहकर रानी का हाथ सुनार के हाथ में दे दिया। राज-परिवार ने रिसालू को बड़ा उलहना दिया, परन्तु उसने यह कह कर वहां से विदा ली कि मैंने तुम्हारी लड़की को उसी प्रकार तज दिया है जिस प्रकार सांप केंचुली को छोड़ता है । ___ रिसालू को अब केवल भोज की लड़की से मिलना था। वह सीधा उज्जैन पहुंचा । उसके संकेत के अनुसार जब बगीचे में ग्राम का झूमका गिर पड़ा, तो भोज की लड़की ने समझा कि रिसालू पा जाना चाहिए था परन्तु निश्चित अवधि तक वह नहीं आया । इसलिए अब प्राण त्याग देना ही उचित होगा । नदी के किनारे उसके लिए चिता बन चुकी थी। रिसालू आकर वहीं बाग में ठहरा । लड़की जलने के लिए चिता के पास पहुंची तब रिसाल ने वहां पहुंच कर अपने आने की सूचना दी। लड़की को जलने से रोक दिया गया और यह निश्चय होने पर कि लड़की का पति रिसालू यही है, दोनों सुख के साथ राजमहलों में प्रानंद भोगने लगे। रिसाल को विश्वास हो गया कि संसार में पतिव्रता और सती नारियां भी हैं ।
वहां से फिर अपनो रानी सहित अपने माता-पिता से मिलने चला। महादेवजी की कृपा से उसका फौज-बल भी बढ़ गया था। शहर के बाहर तालाब पर उसने फौज सहित पड़ाव डाला। राजा समस्तजीत किसी प्रबल शत्रु को आया जान, पहले तो भयभीत हुआ, परन्तु जब पता चला कि बारह वर्ष का वनवास भोगने के बाद यह उसका पुत्र ही पाया है तो उसके हर्ष का ठिकाना न रहा। पूरे शहर में खुशियां मनाई गई और रिसाल को बड़े स्वागत के साथ राजमहलों में लाया गया । कथा-वैशिष्ट्य कथाकार का उद्देश्य
राजस्थानी कथा साहित्य में राजा भोज, विक्रमादित्य, रिसालू आदि प्रसिद्ध व्यक्तियों को लेकर अनेक प्रकार की कथायें बनी हैं। उनमें त्रिया-चरित्र को प्रगट करने वाली कथाओं का अपना महत्व है। इस प्रकार की घटनायें वास्तव में इन महापुरुषों के जीवन में घटी या नहीं, यह कहना बड़ा कठिन है। परन्तु यह स्वीकार किया जा सकता है कि इन विभूतियों का व्यक्तित्व इतना महान् था कि जिसे महत्तर बनाने के लिए ये मानव को अनेकानेक प्रवृत्तियों को जानने के जिज्ञासु निरन्तर बने रहे और अपने ज्ञान की पिपासा को शान्त करने के लिए अनेक प्रकार की कठिनाइयां भी इन्होंने झेली ।
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