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उनका ध्यान निरन्तर बना रहा। आज भी बड़े-बड़े मंदिरों और उपाश्रयों में इस प्रकार के ग्रंथ बहुत बड़ी संख्या में संग्रहीत हैं।
राजघराने-जिस काल में प्रेम, नीति तथा ऐतिहासिक तत्वों को लेकर अधिकांश कथाओं का निर्माण हुआ है, वह काल मुगलसत्ता और संस्कृति से आच्छादित रहा है। आए दिन भू और भामिनी के अतिरिक्त मंदिर और गायों के प्रश्न को लेकर युद्ध होना साधारण बात थी । अपने मान और गौरव की रक्षा के लिए वीर पुरुषों की कथानों का निर्माण एवं प्रचलन कर उत्सर्ग की प्रेरणा प्राप्त करना स्वाभाविक ही था। परन्तु इस प्रकार के युद्धों की क्लान्ति
और सघर्षमय जीवन में रस का संचार करना भी प्रावश्यक था जिसकी पूर्ति के लिए अनेकानेक प्रेम-कथाएं बनती रहीं और अवकाश के क्षणों में वे उनके लिए मनोरंजन के साधन का काम देने में सफल हुईं। राठोड़ पृथ्वीराज की तरह अनेक राजा जहाँ युद्ध कला व काव्यकला दोनों में निपुण थे, वहाँ महाराजा मानसिंह तथा बहादुरसिंह जैसे शासकों ने इन दो कलाओं के अतिरिक्त कथा-निर्माण की कला भी प्राप्त की थी। वैसे शासकों का निजी योगदान उतना नहीं है जितना उनके आश्रय में रहने वाले साहित्यकारों का है। इस प्रकार की रोमान्टिक कथाओं के प्रचलन के पीछे एक सामाजिक प्रक्रिया भी थी। एक राजघराने से उपहार के रूप में लिपिबद्ध बातों की सुन्दर पोथियां दूसरे राजघरानों व विद्वानों को पहुँच जाया करती थीं। एक घराने की लड़की जब दूसरी जगह ब्याही जाती तो वह अपने साथ अपनी मन पसंद कई पोथियें ले जाती थी। इस प्रकार यहाँ के रजवाड़ों में इनका आदान-प्रदान होता रहता था। आज भी अनेक ठिकानों में दूसरे स्थानों की लिखी हई पोथियें उपलब्ध हो जाती है । कहना न होगा कि इस प्रकार के आदान-प्रदान में कथानों के प्रचार के साथ-साथ उनकी भाषा में भी परिमार्जन हुमा है।
चारण व भाट-चारण तथा भाटों का सम्बन्ध यहाँ के शासक वर्ग के साथ तो घनिष्ठ रूप में रहा ही है परन्तु समाज में भी उनकी मान्यता व स्थान सदा से रहता चला आया है। उनके द्वारा राजस्थान में साहित्य-रचना भी बड़े परिमाण में हुई। राज्याश्रय के अतिरिक्त स्वतंत्र रूप से भी वे अन्य साहित्य को तरह कथाओं का निर्माण भी करते थे। उनका सम्पर्क प्रायः साधारण जनता से अधिक रहता था इसलिए जनता में इस प्रकार की कथाओं के प्रचलन का श्रेय भी इन लोगों को ही है। दिन भर के कार्य से थक कर शाम के समय मनोरंजन के लिए जब लोग हथाई पर बैठते थे तो प्रायः कई नो कोई बारहठजी
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