Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 01
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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११० ]
[ राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
ते गछ दीस दीपतो, साचौर नगर मभारि । वीर जिरणेसर दीपतौ, जिहा तीरथ प्रगट उदार ।। १३ तास पाटै अनुक्रमै हुवा, श्रीलीषमीसागर सूरि । विनय करी कर्मसागर, वाचक देय सनूर ॥ १४ तास सीस पुण्यसागर, वाचक पभर एम । अजनासुदी चौपई, पूरण कीधी ते प्रेम ॥। १५ सबत सोल सत्यासीइ, श्रावण मास रसाल ।
सुदि तिथि पचमी निरमल, रिद्धि वृद्धि मगल माल ॥ १६
सर्व गाथा ।। इति श्री प्रजना सुदरी चौपई सपूर्ण सबत १८६८ मीगसर कृष्ण पक्ष तिथौ १ भौमवासरे द्वीतीय प्रहरे लिषत ऋष नोलचद पीही ग्रामे उदावत राज्ये वाचनार्थ चीर नद्य श्रीरस्तु ॥ श्री ॥
२४
१८२०
आदि - ॥६०॥ श्री गुरुभ्यो नम ॥
अजना सुदरी भास अपूर्ण
ढाल - बाहुबलि रयण इम चितवइ सरसति सामिणी प्रणमियइ ।
गोतम स्वामि जा पाइरे । अजना सुदरीनी कथा नारि नर सुरगह मन लाइरे ॥ १ ॥ सील भवियर भइ पालियइ । पाइय सुजस समार रे । सवि कुसगत वली टालियइ जइय भव दुष पार रे ||२|| अन्त- धन धन अजनासुदरी, सुमरिउ चित्ति त्रिकाल रे ।
सील भलउ तिरिणइ, पालियउ जसु गावइ मुनिमाल रे । सील भलउ जगि पालियइ । ५६ ।।
इति अजना सुदरी भास समाप्त । भवतु लिषक पाठक ॥ छ ॥ छ ॥ श्री ॥
२६
लिषत वसावण ऋषि बाई बीरो पठनार्थं सुभ
३८६२
श्रबड विद्याधर रास
आदि - || ६०|| सकल पडित मडली मडन प० श्री ५ रविसागर गरिण चरणेभ्यो नम ॥ वस्तु | सदा सपद २ रूप ऊकार । परमेष्ठी पचे सहित । देव त्रिणि सदा सेवित । महाज्ञान प्रानदमय । ब्रह्मबीज योगीद्र वदित ।
हा || भुवन त्रिणि गुरण त्रिरिणमय, विद्या चउद निवास ।
प्रण परमातमा, सर्व सिद्धि सुष वास ॥ १
परम ज्योति परमेस जे, श्री गुरु सारदमाय । आदि कवीसर सत जन, नित वदु तस पाय ॥ २
1
अन्त- सवत सोलउ गरण चालीस । कार्तिक सुदि तेरसि ससि दीस । सिद्ध जोग रिष अश्विनी । अबड कथा चोपइ नीपनी ॥ १३ भरणता बुद्ध मरीरे जोय । बुद्धि सिद्धि सवि होय | सिद्ध देव गुरु सकति । गुरु भक्तिथी पामइ भक्ति ॥ १४ नव रस मइ प्रबड़ रासनी । स्रोता वगता जन पावनी । वीर कथा भावइ जे कहइ । च्यार पदारथ सहजे लहइ || १५

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