Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 01
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 133
________________ १२६ ] [ राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान ७८६ ११२४ (१०) दामनक चोपाई आदि- ॥०॥ वा० श्रीसौभाग्यशेखरगुरवे नम ॥ दूहा । सरमति सामिरिण वीनवी, मागु अविचल मान । सरस कथा रस बोलवा, दे जेउ वरदान ॥१ दया धर्म जगि रूयहउ, भाषइ श्रीजिनराय । तसऊ परि सबधहु, बोलिसु सगुरु पसाय ॥ २ मानव भव दुहिल्यु लही, कीजइ जीव यत्तन । दामनगनी परिसदा, लहीइ परिघलधन ॥ ३ . अन्त- सवत सोल त्रिसठि जाणि (१६६३) । ज्येष्ट सुदि नवमी सु बषाणि ।। राउ(?)द्रहा नगर मझारि । श्रीवर्द्धमान स्वामि आधारि ॥ ३१ पुन्यइ मुष सपति घरि होइ । पुन्यइ जय लाभइ जगि जोइ ।। दयाशील वाचक इमि कहइ । पुन्य थकी सिव पद लहइ ।। १३२ इति श्रीजीवदया विषये दामनग चुपाई सपूर्ण लिषित मुनि श्रीज्ञानशेखरेण साहराउल पठनकृते श्रीपार्श्वनाथप्रसादात् श्रीरस्तु ॥ ८७६ ४६२४ (३) नागदमण कथा (अपूर्ण) आदि- ॥०॥ श्रीसारदाय नम ॥ अथ नागदमणि लिष्यते ।। दुहा ।। वलतो सारद विनवु, गुणपति करो पसाऊ । पवाडा पनगा सरस, जदुपति कीधो जाऊ ॥१ प्रभू अनेके पाडीया, देत वडा चादन । के पालण पोढीया, के पय पान करन । २ कोइ न दीधो कानवा, सुण्यो न लीला बध । आप बधावण उषला, बीजा छोडण बच ।। ३ अन्त- "कलश ।। सुणे पुणे सम वास, नद नदन अहिनारी। समुद्र पार ससार, दोई गोपद अणहारी ॥ अनतर आणद सवे वषताप सुणावै । भगति मुगति भडार, ऋगन मुगनाह करावै ॥ रमीयो चरित राधारमणि' • • ॥ ९१३ ११२३ (२२) नेमिनाथ चदाइण गीत आदि-आर्द०॥ राग केदार गुडी ।। दूहउ ।। सामल वर्ण सोहामणु, सब गुण भणु भडार । मुगति मनोहर मानिनी, तिनको हइ भग्थार ॥ १ वालि ॥ मुगति रमनि तु भरथारा । तुझ गुण कोइ न पामइ पारा॥ तीन भुवनहु आधारा । अभयदान तुहइ दातारा ॥ २ अन्त- सहस बस्स कु आयु ज पालिउ । जनम मरण कु भइ स बटालिउ ।। सकल ध्यान ऊजल गिरि करीए। नेमनाथ शिव रमरणी वरीए॥ ४५

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