Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 01
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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१४२ ]
अन्त- कवीत. ॥ असी करीउ काहु करे नही, कोउ सो करी राजवी चक्र तल । वाईस वीक्रम रारण वुयवीन षाईवयाभा अजहु मध्यकी रोड रोले । दक्षीन भडारा मदगल कहु हमेल करी ।
कदल रनथभ गढ असी करै न कोई ॥
श्री रायनाको श्रीगार सपुरन समापती ।
छद जाजाको || कुडलीयो माई मोहदे प्रसीस काई जीवो वरस सो । याई मोह दे असीस छीत्री ई तोर जीवो । वारा ऊपर वीस भनैजा जन वीरम केह ।
लीत पाडे नाथुराम ब्राह्मन गोडमी श्रासावी श्रम धर्ममुर्त गड ब्राह्मनका रक्षपाल राजा श्रीमलजीकू नाथुराम ब्राह्मन गोड सदारामको भतीजो टोढ रहे है पकीजीको अप भीछुकको असीस वचजोजी मीती पोस वदी ६ मगलवार सवत् १७८७ जो पुस्तग वाचे जीकु राम राम वचजोजी । जाद्रष्ट दत्त्वा ताद्रस लीषते मा । जदी सुद्ध वीसुद्ध वा मम दोषे न दीयते ॥ शु० ॥
२३७४ (१०)
श्रादि - || अथ हरचद लष्यते ।
[ राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
हरचदपुरी
नेरी वनी उत्यम ठाय । राज करे ता हरचंद राय ॥ १ रायना चक्र फरे नव षड । प्राण न लोपे को बलवत ॥ २ सासु छोल वऊ नव फरे । पित्य पिलो पुत्र नमी मरे || ३ गउ तुलसी विरामरणने दवार । रावु सत हरचंद ने राय ॥ ४
अन्त काढी षडकने धसमसो जाघायो मुके सीस ।
२८१३ (६८-६१ )
आगल चकीता आवीउ भाहावग्रहा जगदीस ||८
ती हरचदपुरी सपुर्ण ॥ १०५५।।
हीयाली
१ हीरकलश कृत
जलि कमल प्रसगइ | वास वसइ लघु अग विश्रगइ || कहिहो पडित ते फुरण नारी । स्याम वरण ते स्याम सिंगारी ॥
कवरण सुनीर कमल कुरण नारी । हीरकलस कहि कहउ न इ विचारी ॥ ८
२ हेमाणद कृत
राग मल्हार || एक पुरुष सामल सुकुलीगड रमणी त्रिहु भरतार रे ॥
गंगा सरि सिरि मूल उत्पन्नउ सुविचारउ ससार रे ॥ १
हीरकलस मुनि सीस हेमाणद बोलइ मन उल्हाम रे ॥ ५
अन्त - इति श्रीहीयाली नाम कृत हीरकलस मुनि ॥ सवत १६५७ वर्षे काती सुदी २ दिने रडवी स्थाने ।

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