Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 01
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 137
________________ १३० ] [ राजस्थान प्रच्यविद्या प्रतिष्ठान बीचसे कुछ उदाहरण साथ सहेट चल्यो चहै, मुग्धो तिय पिय छैल । षीसेमे कोडी न्ही, चले बाग की सैल ।। ६७ सहज रीति कुल तजि लगै, काम कलाकै साज । बाप न मारी मीडकी, बेटा तीरदाज ।। ७० अन्त- छद तीनसंसाठ सब, व्यवहारै सुष देत । राज-सभा-रजन सरस, कियो रसिकजन हेत ।। ६७ अक बान मुनि ससि (१७५६) समा, विक्रम सक नभ मास । उजल नवमी भृगु दिवस, पूरन रस-प्रकास ॥ ६८ सुषद भूमि सग्रामपुर, श्रीनृपवर जयसाहि । तहि कवि मन सुप्रसन्न अति, मति रतिसो अवगाह ॥ ६६ जब लो सुष सज्जन कला, मेरु धराधर वाम । तब लो चिर जीवहु रसिक, पढत गुणत गुन नाम ॥ ७० इति श्रीराजसभा-रजन दोहा समाप्त । सबत् १७६८ वर्षे मिति पोस बदि १४ शुक्र लिपिकृत श्रीरस्तु कल्याणमस्तु । १४७६ ४८३४ राठोड नाहरखानरो छद आदि- छद राठोड नाहरषानरौ गाडण माधौदास रौ कह्यो । प्रारज्या॥ उग्पन्ना पुरसाणी उडा। पाणी पछा पाषर होडा। औरा कीआ रछ्छीस जोडा । नाहरषान समप्पै घोडा ।। १ भाडजी केवी मुगलाणी । पासा पैग जिके षुरसाणी ॥ वडपाता सुरण अवरल वारणी । रेवत रीझ दीये राजाणी ॥ २ अन्त- कलस ॥ वहस तेज बहु सफल बहुत मोला बहु भोयण । धीरज तेज अनत लोय दीप क्वहलोयण ॥ घड विसाल पे करह गात उतगह मैंगल । पवग वेग विसराल वाजि वीया वेगागल ॥ बरहास वडा वड कवीयणा त्यागी द्यण हरते रवै । समपीया षान राजानकै कुप करन्नह अभिनवै ॥ इति नाहरषान घोडारा दाताररौ छद सपूरण ॥ १४९८ ३८६७ रामयशोरसायन आदि- ०॥ राम-रासा लिषते ॥ वेलावल रागे ॥ दोहा।। श्रीमुनिसोव्रतस्वामि नमो, त्रिभवन तारण देव । तीरथ कर प्रभु वीशमो, सुर नर सारै सेव ॥ पुत्र सुमित्र नरिद्रनो, पो मावैत समाय । जनमा भुमि जिनवर तरणी, राजग्रही कहवाय ॥२

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