Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 01
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 141
________________ १३४ ] [ राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान प्रणमु गोतम प्रमुष वलि, गणधर गुणह निवास । समरता गुण जेहता, पूजइ सगली प्रास । अन्त- तास सीस रगइ कहइ, राजसिघ प्राणद । विद्याविलास नप गाईयउ, दान अधिक सुषकद । ४५ ए सवध सुहामणउ, सुरणत भरणत दुष दूर । मनवठित माहिल फलइ, लहावड सुषतर पूर । ४६ इति श्रीविद्याविलास चउपई समाप्त सपूर्ण सर्वगाथा, ३४६ ग्रथान ४१६ सवत् १६६३ वर्षे माह वदि ६ नौमि ठाकरसी वाचनार्थ लिषित श्रीजेशलमेरमध्ये शुभ भवतु कल्याणमस्तु । १६२६ ६१११ विद्याविलास चोपाई आदि- ॥०॥ श्रीसरस्वत्यै नम ।। दूहा- सरसति नित आपो सुमति, चित हित धरि प्रणमेवि । जित तित थिन थानक अचल, सोभित दह दिसि देवि ॥१ कवियण नरसा निधि करण, दूर हरण अग्न्यान । चरण सरण उपम धरण, उपावरण गुण ग्यान ॥ २ अन्त- वाचक गुणवर्धन सुषदाया, श्रीसोमगणि मुपसायाजी । इम जिनहरष पुण्य गुण गाया, तीस ढाल सुष पायाजी ।। १४ हिव राजानि सुणै गुरवाणी ॥ इति श्रीपुण्यविषये विद्याविलास चोपई सपूर्ण । स० १८२६ वर्षे मिति प्रामाढ सुदि ७ दिने । १६३२ १८२७ विद्याविलास रास ( पवाडउ) आदि-बर्दि०॥ ॐ नम ॥ श्रीवीतरागाय नम ।। पहिल पणमु पढम जिणेसर, शत्रुजय अवतार । हथिणाउरि श्रीशाति जिणेसर, उजलनेमि कुमार ॥ १ जी राउलि पुरि पास जिरणेसर, साच उरउ वर्धमान । कासमीरि पुरि सरसति सामणि, दिउ मुझ नित वरदान ॥२ अन्त- सयम लेई सिवपुरि पुहुतउ धन धन विद्याविलासइ । भरणइ हीराणद सो श्रीसघह वछित पूरउ आसइ ।। १६ मवत चऊद पच्यासी अए, रचीउ ए हरमालतु । अचल वधामणा ए॥ १६ जा लगइ अबरि रवि तपए ता लगइ विस्तरउ ए चरी। __ अचल वधामणा ए॥२० इति विद्याविलास चरित्ररास सपूर्ण ॥ सवत् १६७६ वर्षे ।। आसो वदि दुवादसी गुरुवारे... जावालमधे लिषित | शुभ भयतु ।।

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