Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 01
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 136
________________ राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ सूची भाग-१ ] [ १२९ कथा मरसने कवि वयण, केलवीया बहु मीठ । सावर द्राप अमी थकी, मे तो अधिका दीठ ।। २ अन्त- मवत मतरेमतवीसे बुरे । मुदि प्रामाढे वीज दिने गुरे ।। परतर मह गुरुजिणचद जयकरू । तेहने राजे सोहगमुदरू ।। सुदरू मोममु दर प्रसादे । अभयमोम इणि परि कहे ।। ए सरम कहिने कथा दापी । भेद मतिमदिर लहे ॥ इति श्रीमानतुग मानवती चतुपदी समाप्ता ।। म० १७७८ चैत्र मुदि चतुर्थी लिषिता प० राजविजयवरै ।। श्राविका पुण्यप्रभाविका देवगरुभक्तिकारिका केसरपठनार्थ वीक्रमपुर वास्तव्य कल्याणमस्तु । १३८२ ३५५० (१५) भेडता प्रादिकी ऐतिहासिक हकीकत आदि- मवत् १७४६ वर्ष पोम वदि नबाव अन्याइतपानरो बेटी रावणषडौ निगनु मेटतीय जोधे षाडानु मारीयो। साभरि परै तुरक घणा मरण गया। रपन वपत घोडा कुद ब सर्व रजपूतारै आयो। राडानु वाढी। मारवाडि माहे वरस ७८ रह्यो। लोका माहे लीक पाडतौ गाव घणा षाडै मारीया था तका सर्व कसर काढी। मुहकमसीघ मेडतीयानु मारीयो हुतो तको वैर लीयो । अन्त- स० १७५२ वर्षे वगडी मुकात स्पीया हजार ७ लसकरीषानरे बेटे बीजो हबीबषान लीधी । साष नीपनी सषरी । मेह घरणा हूआ ॥ १ १४५४ ७७२० (२३) रागनामोपरि विरहसुभाषित पादि-०॥ प्रीतम चाल्यो हे मषी, ललित करी लपवार । ह्यिडा उपर हिसतो, मो विरहणीको ना हार ।। १ तुम विरण मेरे प्रीतमा, मदीर माहि अधार। घर बाहर नही आलगे, जा कीयो दीव गधार ।। २ अन्त- थाहरो प्रीतम आइयो, सज्या समे सुजाण। मन उछाहो अधि हुयो, करो कल्याण कल्याण ॥ ३० प्रीउ पधार्या हे मषी, पायो आज मोभाग। जैतश्री जय जय करे, आज अम्हारो भाग ॥ ३१ इति राग सपूर्ण सवत् १७६५ वर्षे जेठ सूद ७ दीने श्री ॥ १४६१ ४६०६ (२) राजसभारंजन प्रादि- ०।। अथ राजसभारजन लिप्यते ॥ गगाधर सेवहु सदा, गाहक रसिक प्रवीन । राजसभारजन कहो, मन हुलास रस लीन ।। १ दपतिरति नीरोगतन, विद्या सुवन सुगेह । जो दिन जाय आनदमै, जीतबको फल एह ।। २

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