Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 01
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ सूचि, भाग-१ ]
[ ११५ श्री जिनकुशल सुरी सतउ, ध्यान धरूचित लाइ।
ईहक आस्था पूरवइ, इ जग विरुद कहाइ ।। २ अन्त- दयासार कहइ सुप भरपूरा । दिन दिन हे तप पूरा छै ॥२६ सं०
इति श्री सम्यक्त्वांधिकारे श्रेष्ठी पारामनंदन पदमावती चउपई समाप्ता ॥ सर्व ६२५ छः छः छः ढाल २७ ॥सर्व ग्रंथानं ८२६॥ संवत् १७४६ वर्षे प्रासू सुदि ७ तिथी गुरूवारे महाजन मध्ये लिषतं विजयमुंदरेण ॥ १८६. ३५४६ (१६). प्रासथानजीरी वारता
आदि- अथ राव सीहाजी पुत्र प्रासथांनजीरी वार्ता ॥ राव सीहाजी तो कनवज रांमसरण हुवा । सोलंपणीजीरै बेटा तीन हुवा था ! आसथांन १ सोनिग २ अज ३ । कनवज टीका बाबत अवांणग हुई । तर पाटण मोसालनै षडीया - । तिके पाधरा दर मजले पाली प्रायन उतरीया । तर श्री जिणदतसूरजी ब्रामणांने कह्यौ औ वडा रजपूत छै। मारवाडि माह हजार वरस राज करसी ...।
अन्त- संवत १४३८ तठे पछै राव चंडै मंडोवर लीधी नै राजथांन बंध्यो। मंडोवर ईदां चुडाजीनै हथलेवामै दीधी। पछै रावजी मंडोवर उठायन आपरै नांव चिडीया टुकरा भाखर उपर गढ करायो ने जोधपुर वसायो । संवत १५१५ जेठ सुदि ११ । तठा पछै जोधपुर होज राजथांन छ । इति आसथांनजी वार्ता । १६७. ९०७
इलाचीकूमार: रास आदि- दि०॥ उं नमः ।। श्रीः ।। दोहा ।। सकल सिद्धि दाई सदा, प्रणमू जिरणवर पास ।
ईलाकुमर ऋषि गावतां, प्रा वचन विलास ॥ १ अन्त- वली ऋषि मंडल मांथी लीयो । ए अधिकार मई सीधा छ । १२
तिणथी न्यून अधिक जे भाषिउ । तेमि छादुक्कड़ मई दाप्यौ छै ।।१४।भा. ग्रंथागर अक्षर गुंगा प्राप्यो । विसेनेस तस विजांगो छै ।।१५।।भा. संवत सतर उगणीसा वरसे । शेष पूरि मनहरसिं छै ।। १६॥भा. आसो सुदि द्वीतीया दिन सारइ । हस्त नप्षत्र गुरुवारे छै ।१७||भा. ज्ञानसागर दीइ संध प्रासीमा । दिनिदिनि दुज्यो सुजगीमा छै ॥१८भा.
जस सानिधि साधु चारित पालें । ज्ञान दरसन अजु पालें छै ॥१६॥भा. सर्व गाथा १८७ ।। इति श्री भाव विषय इलापुत्र इलाची रास संपूर्ण ॥ संवत् १७४६ वर्षे मागसर मासे कृष्णपक्षे १ तिथौ बुधवासरे श्रीघोघाबंदरमध्ये लषितं । मुनि कुंअरकुशलेन कल्याणं भवतु ॥श्रीः।।श्रीः।। २२४. २२१३ (२)
उपदेशसत्तरी आदि-पार्द०॥ उतपत जिव जोय आपणी, मन मांहि विमान ।
गरभावास जीवडो वसीयो नवमास ॥१॥ उतपत० नारि तणीना भात लै जिनवचने जोइ । फूल तणी जिम नालका तिम नाडी दोई ॥२॥ उ०

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