Book Title: Rajasthani Hastlikhit Granthsuchi Part 01
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
View full book text
________________
राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ सूचि - भाग - १ ]
३०६ ४०२०
कविकल्पलता
आदि || दं ॥ अथ श्रीसारकृत बावन्नी तियतं । अंकार अपार पार तमू कोड न लभ्यें । सवर कर सिरताज मंत्र धुरि कवियाभ्यै || अग्धचद आकार उवरे मीडो जमु सोहे | जै व्यावै चित लाय तिकै तिहुयण मन मोहै ॥ साबक सिध जोगी जती जासु ध्यान ग्रहनिस करें । कवि मार कहै ॐकार जप काठ मैरण भुलो फिरें ॥ १
अन्त- क्षिते मदन क्षिति तिलक महर पाली पुर सोहै । गढ मरु मंदिर महिल वाग वाडी सनमोहै ॥ राज करें जगनाथ सुर मामत र सवाया ।
मोनगरे सुममथ मुजम वसुधा वर तायो ॥
मत्र मोलैनिव्यासियै प्रासु सुदी दममी दिने ।
श्रीसार कवित बावन कह्या साभलिज्यो सार्च मनै ॥५५
३२५
इति श्रीकविकल्पलता श्रीसारकृते सपुण । सुभ भूयात् !! श्री सवत १८७८ रा मती फागुण सुदी १० स श्री श्रीगुराजी श्रीवैनरामजी । लीषता कु इद्रभारग वाचनारथम्
रणदपुरमध्ये |
[ ११
कागदरी नकल
इस गुटकेमे पत्र म० ३९८ से पत्र स० ४०६ तक चार कागजो ( पत्रो ) की नक्ले दी हुई है जो इस प्रकार है
पहली नकल प्रादि- कागदरी नक्ल ।
छद नराच - मने हत माभर नगर मधर । प्यारी निज हाथ दियो पतर । सुभ वान कथानक सुदरिय । छिव गात अनत चित हरिय || १ सलिता सर निसर नीर वहै । नलनि सुभ वास धरै र लहै ।
वहु वास निवास न कुप वनै । वनिता गनि तीर सूनीर थनै ॥ २ अन्न- दिन जात वृधा तुम सग विना । कबहु सुष होत न आप विना । कहता ज रजी समचार सवं । सु मिथ्या तन मानहु भाम कवै ॥ १७ न लिषे तुम पत्र सनेह घनौ । पय जावनकी तुम रीत गनौ । जुग राम वस् ससि सबत य । सुभ मास तथी सरम चरय ॥
१८ इति ॥ [ सवत् १८३४ ]
दूसरी नकल
सुकल सुभ प्रोपमा
जीवरी जडी,
आदि - कागदरी नकल लीषते । स्वस्त श्री मुकानगर सुथाने केलास क्यारी, प्रेमरनप्यारी, चदवदनी, मृगलोचनी, लगनरी लडी, हीयारी हार, सेजरी सिरसगार, प्रीतमरी षीलार, चितरी ऊदार, हसतमुषी, सदा सुषी 1
४६१५ (१६)

Page Navigation
1 ... 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156