________________
* श्री *
परिशिष्ट १
[ कतिपय ग्रन्थोका विशेष परिचय ] १ ७७५३ (१-१७)' अकपाटी आदि गुटका
प्रारभिक दो पत्रोमे लघु चाणक्यनीतिके दूसरे अव्यायका अतिम श्लोक तथा तृतीय अव्याय लिखित हे। आगे १७ पत्रोमे अपार्टीका लेखन हुआ है, पत्रमे पर अक-सख्या और नीचे सुभापित (नीतिपरक) दोहे, श्लोक आदि है। उदाहरणार्थ
'दान दया दमोद्रिण दर्शन देवपूजित । दकारा पचवर्तते दूर्गत नैव गछति ।। १
(पत्र १) दूहा ।। मरनर अक्षर सीप पीव, जो रपै अप्यारण ।
मर वेरीतर मायरा, अक्षर राज दुवाण ॥ १ (पत्र २) अन्तके १६ १७वे पत्रमेदहा ॥ काली तू कोयल भली, जम मनपरो विवेक ।
अब विहूणी अवरसु, बोल न बोलै एक ॥ १ (पत्र १६वाँ) गाम गोग्मे होत है, जोय दूर मत जाय ।
वनी वताइ पारसी, अरय कह्यो इण माय ॥ १ (पत्र १७वॉ) । लीषन । पीउन श्री ५ श्रीवालचदजी लीषी छ। स० १८३५ मीगसर मुद ५ वार मगलवार अषसुरै जै सरूप गोठीरा छ। ६५२५
अजना चोपाई आदि ॥०॥ श्री गणेशायनम ।। दूहा ॥ श्रीगणधर गौतम प्रमुष, एकादस अभिराम ।
मन वछित सुष सपज, नित ममरता नाम ।। १ प्रथम उद्यम में माडियो, मति दीम अति मद । तिण कारण पहिला नमु, श्रीगणवर सुष कद ।। २ सेवकन मानिध करै, देड्यो अविरल वाणि ।
जिम वेगो सिद्ध चढे, काइम राषि सकाणि ॥ ४ अन्त- तिरिण गछ पीपल थापीयो, पाठ साषा विस्तार ।
सवत रुद्र बावीसमै, बीसमै हूई मुषकार ॥ १२
१ पहली सख्या क्रमाङ्क और दूसरी ग्रन्थाङ्क सूचक है। कोष्ठकके अङ्क गुटकाके अन्तर्गत रचना-सख्याने द्योतक है।