Book Title: Rajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Author(s): Kasturchand Kasliwal, Anupchand
Publisher: Prabandh Karini Committee Jaipur
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सिद्धा एक चर्चा ]
२३६. प्रति सं० २ | पत्र
२४० प्रति सं० ३ । पत्र सं० ३६
भण्डार ।
४४ | ० काल X
। ले० काल X
२४१. प्रति सं० ४ | एक सं० २७ ले काल X |
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२५० प्रति सं० ५ पत्र सं० ४२ विशेषस्तव दीवान ज्ञानचन्द की है ।
ले काल X
० ० २३१ । क मण्डार ।
० सं० २४२ । कभार |
वे० सं० ६५ । ख भण्डार |
० सं० २९ ।
भण्डार
० ४ ० का
I
० ० १२२ ।
४३. प्रति सं० ६ २४४. स्वार्थसार दीपक- २० मकलकीर्ति
पत्र
[सं०] ११
संस्कृत विषय-सिद्धान्त २० काल ४ ले कान पूर्ण । ० सं० २०४ | श्र भण्डार |
1
विषम मालकीति मे 'स्वार्थमारवीपक' में जैन दर्शन के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन किया है। १२ में विभक्त है। यह तस्वार्थ की टीका नहीं है जैसा कि इसके नाम से प्रकट होता है।
५५. प्रति सं० २ । पत्र मं०७४ | ० काल सं० १८२६ १ ० मं० २४० । क भण्डार ०६० का ० १०६४ मा
२४६. प्रति ० ३
विशेष महात्मा होन्द ने प्रतिलिपि का ।
२४७. तवार्थसार दीपकभाषा - पन्नालाल चौधरी
भाषा - हिन्दी गद्य | विषय - सिद्धान्त । १० काल सं० १६३७ ज्येष्ठ बुदी ७
--
[ २३
भार
पा० ११४५ भाषा
विशेष- जिन २ ग्रन्थों की गशालाल ने भाषा लिखी है सब की सूचा दी हुई है।
२००२४१ क
व सं० २०१० १२३४५
ले० काल X पूर्णा के मं२६६४
)
२४८ प्रति सं० २ ० २०७० काल x | ० सं० २४३ । कमण्डर
२४६. तत्त्वार्थ सूत्र - उमाम्नाति । पत्र सं० २१ । प्रा० ७२३
भाषा-संस्कृत । विषम
सिद्धान्त कालले काल सं० १४५८ श्रावण सुदी ६ पूर्ण वे० सं० २१६६ (क) अ भण्डार | --लाल एव हैं जिन पर (रजत) अक्षर है। प्रति प्रदर्शनी में रखने योग्य है। नत्वार्थ सूत्र नमाप्ति पर कार लोन प्रारम्भ होता है लेकिन यह पूर्ण है।
प्रति०] १४५६ भावरण सुदी ६ २५० प्रति सं० २०१६ का ० १९२६००२२०० भार विशेषप्रति स्वर्णाक्षरों में है पत्रों के किनारों पर सुन्दर लें है। प्रति दर्शनीय एवं नर्शनी में रखने भोग्य है नवांग प्रति है। सं० २६२६ में जहरीलालजी जी श्री वालो ने व्रतोद्याने प्रति सिखा कर बढ़ाई।
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२५१. प्रति सं० ३ ० ३७० काम०२२०२ । अदा विशेष प्रति तापनीय एवं प्रदर्शनी योग्य है।