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रायपसेण इय सुतं
॥२०॥
"मानादिक शत्रु महा निज छंदे न मराय, जातां सद्गुरु शरणमां अल्पप्रयासे जाय." - श्रीमद् राजचंद्र.
आ पद्योक्त भावने लक्ष्यमां राखी राजाप साधना शरू करी अने गुरुराजना कहेवा प्रमाणे पोतानी जात उपर ज अखतरो शरू कर्यो. साधनाने मंगळमय करवा माटे प्रथम तो राजा परसीए पोताना गुरुदेव केशी मुनिने क्षमा आपवा माटे प्रार्थ्या, राजाप भरसभामां जणायुंके, आ पवित्र मुनिराजनो में घणो अविनय कर्यो छे ते बदल ते महात्मा मने क्षमा करवा कृपा करे ए मारी तेमने नम्र विनंती छे. पछी तो राजाए पोतानी सर्व संपत्तिना चार सरखा भाग कर्या, जेमांनो एक भाग मात्र तेणे दान मांटे ज योज्यो अने दानधर्मने दानपारमिताने - केळवतो राजा पोतानी साधनामां लयलीन रहेवा लाग्यो.
हवे ते पटलो वध साधनामय बनवा लाग्यो के, तेने पोतानी प्रिय राणीनी पण भोगसाधन तरीकेनी विस्मृति थवा लागी, एटलुंज नहि पण राणी राजाने विष आप्युं अने ते राजानी जाणमां आव्युं छतां तेनुं एक संवाडुं पण न फरक्युं तेने पोताना देहनी एटली वधी विस्मृति थई गई के देहनो नाश करनारी राणी माटे तेने मनमां कशुं ज न ऊग्युं ते तद्दन स्वस्थ रह्यो अने " आत्मन्येव आत्मना तुष्टः "नी परिस्थितिए लगभग पहोंचु पहोंचु थतां सूर्याभ-सूर्य जेवी झगारा मारती दिव्य-स्थितिने पाम्यो अने छेवटे* विदेह थई ज्योतमां ज्योतनी दशाने ते अनुभवशे.
गतानुगतिकता, अंधश्रद्धा, परीक्षणशक्तिनो विरोध वा अभाव, नवा नवा प्रयोगोने विवेकपूर्वक खेडवानुं साहस न होवुं, पूर्वग्रहनो अत्यधिक पक्षपात, कोईएक जातनी विवेक विनानी स्थितिचुस्तता, जिज्ञासा ज न थवी, तर्कशक्तिनो दुरुपयोग, आडंबरप्रियता, मुंझ. aणने दबावी देवानी वृत्ति, शांत करवा माटे मुंझवणने प्रकट करवानी अशक्ति वा प्रकट करतां कोई जातना भयनी आशंका इत्यादि अनेक दुर्गुणो मुमुक्षु जिज्ञासुना जीवनविकासनो संहार करे छे.
* श्री केशी मुनिराज अने राजा पसीना संवादमा में जे नवनीत जोयुं छे ते अहीं जणावेलुं छे.
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