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रायपसेणइयत्त
जिज्ञासुनुं नाम पपसी छे. अहीं तेने एक क्रूर राजा तरीके ओळखावेला छेतेनो एक मित्र कहो, अमात्य कहो के सारथि कहो, ते चित्त नामे कल्याणमित्र छे. ए राज्यकर्मकुशळ अने विशेष समयक्ष छे. ग्रंथकारना कहेवा प्रमाणे पपसीनो पिता अने पितामह पण तेनी जेवो ज क्रूर हतो अने मातामही तो धर्मनिष्ठ श्रमणोपासिका हती अने जीव अजीव तत्त्वोनी जाणकार हती
पसीनुं वर्णन आपतां मूळकार कहे छे के ते अधार्मिक खंड रौद्र साहसिक अने घातक हतो, श्रमण ब्राह्मण गुरुजन कोईनो विनय न करतो, एटलुं ज नहीं पण ए पोताना देशनो कारभार सुद्धां बरावर न चलावतो.
'शरीरथी जुदो एक आत्मा छे', 'मरण पछी जन्मांतर छे' 'पुण्यपापनी प्रवृत्तिद्वारा ज सुखदुःखनुं निर्माण छे' एवा एवा ख्यालोने ते स्वीकारतो नहि. तेने लीधे ज संभव छे के ते पवो क्रूर अने अविनयी थई गयो होय.
तेनो कल्याणमित्र चित्त, पपसीना ए ख्यालो संबंधे बहारथी तो उदासीन तटस्थ जेबो रहेतो, पण पोताना मित्र राजाने प संबंधे कवानो - समजाववानो अवसर तो ते शोध्या ज करतो.
एक प्रसंगे चित्त, राजकीय कार्य माटे राजधानी छोडी बीजे गाम गयो, त्यां ते, श्रीपार्श्वनाथ भगवाननी परंपराना केशी नामना मुनिनो धर्मोपदेश सांभळी तेमनो अनुयायो थयो - श्रमणोपासक थयो.
ए चित्ते पोताना गुरुभूत मुनिने पोताना राजानी मान्यताओ विशे वात करो अने राजानी ए मान्यताओने लीधे पोताना देशनी दुःखमय कथनी कही संभळावी अने ए दुःखमय स्थितिमांथी देशने अने राजाने छोडबवा अने ते अर्थ पोतानी राजधानीमां पधारवा ते मुनिराजने तेणे आग्रह भर्यु आमंत्रण आप्युं अने साथै उमेर्यु के, आप आवशो तो राजा जरूर सुधरो जशे अने ते द्वारा अमारो - अमारा आखा देशनो देशनी समस्त जनतानो उद्धार करवानुं श्रेय आपने मशे.
राजानो कर स्वभाव अने नास्तिकता भरेला ख्यालो जाणी केशी मुनि चित्तना ते आमंत्रणनो प्रथम तो अस्वीकार कर्यो अने तेना समर्थनमा जणान्युं के चित्त ! जे वनमां घणां दुष्ट श्वापदो रहेत होय ते वनमां वसतुं सलामत कहेवाय ? तेम जे नगरमां
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