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प्रवेशक
रायपसेणइय सुत्त
॥१६॥
पाकी खात्री थई.
वळी, राजा उपर करतानो वा अधार्मिकतानो जे आरोप छे ते आरोप मात्र छे, दृष्टिमेदतुं परिणाम छे. जेम कोई शोधक, पोताना जीवननी शुद्धि माटे वा पोते स्वीकारेला मार्गनी परीक्षाद्वारा पाकी खात्री करया माटे अनेक प्रयोगो करे-पोता उपर के बीजा उपर अनेक क्रियाओ करे, एवो कोई पण शोधक, गतानुगतिक लोकोनी नजरमां धूनी वा र ज लेखावानो, तेम आ राजा क्रूर लेखायो छे एवो अभिप्राय मुनिराजे राजा माटे बांध्यो. __राजाए आत्मानी शोध माटे जे जे प्रयोगो करेला ते बधा मुनिराजे सावधानताथी सांभळ्या. ते प्रत्येक प्रयोग पाछळ राजानी प्रखर तर्कशक्तिनुं बळ हतुं ते पण तेमना समजवामां आव्यु.
मुनिराजे राजाने कहा: पपसी! ते श्रम तो खूब कयों छे पण तारो प श्रम शरूआतथी ज विपरीतता भणी जनारो होई तने तेमां संतोष के शांति न मळे ए बनवा जेवू छे.
राजाना प्रयोगो संबंधे चर्चा करतां कया प्रयोगमां कयो कयो दोष हतो ए हकीकत मुनिराजे स्पष्ट कही बतावी अने छेवटे कह्यु के, पएसी! जे वृक्ष नीचे आपणे बेठा छोए तेनां पांदडां कोण हलावे छे? ऊडीने आपणा तरफ आवती आ धूळ कोण ऊडाडे छे ? शुं तुं ते पांदडां हलावनारने वा धूळ ऊडाडनारने जोई शके छे ?
पपसी बोल्योः महाराज! हलावनार तो पवन छे, पण हूं तेने जोई शकतो नथी.
मुनि बोल्याः पएसो! पवन तो रूप रस गंध स्पर्श अने शब्दवाळो छे छतां आपणे तेने नरी आंखे जोई शकता नथी, तो रूप रस गंध स्पर्श अने शब्दथी पर रहेला आकार विनाना पचा अमूर्त आत्माने आपणे नरी आंखे शी रीते निहाळी शकीए ? आत्मा आंखनो वा बीजी कोई इन्द्रियनो विषय नथी, माटे तेने शोधवा ते करेला भौतिक प्रयोगो तदन नकामा नीवडे ए बनवाजोग छै; ए तो एक मात्र अनुभवनो ज विषय छे.
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