Book Title: Raipaseniya Suttam
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay
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प्रवेशक
रायपसेण इय सुत्तं
॥१२॥
व्याकरणनो उपयोग कयों छे. तेओ प्राय.तना पंडित होवा उपरान्त देश्यप्राकृतना पण पंडित इता. तेथीज तेमणे तेमनी टीकाओमां देश्य शब्दोना अर्थों समजाववा माटे 'अभिमानचिह्न' नामना देशी कोशकारनो उल्लेख करीने तेम ज कशा उल्लेख विना पण देशी कोशनां प्रमाणो जग्याए जग्याए आपेलां छे. तेमनी टीकाओमा घणी वस्तुओ तद्दन नवी ज जाणवा मळे छे. कोई जिज्ञासु मात्र तेमनी टीकाओ उपर निबन्ध लखे तो तेमनी विचारसरणीनो नवीनता जरूर प्रकाशमा आवे. तेओ श्रद्धालु छे छतां अनुगामी नथी एम चोकस मालुम पडे छे.
जिज्ञासुनुं जीवनवृत्त आ सूत्र वांचनाराए एमांथी खास शु सार लेघानो छे तेनी समजनी खातर आ नीचे आ सूत्रना मूळ नायकर्नु घणु संक्षिप्त वृत्तान्त आपवामां आव्यु छः
आ समग्र ग्रंथर्मा एक जिज्ञासुनी जीवनकथा आलेखापली छे. ग्रंथकारे वाचकोनी जिज्ञासाने उत्तेजित करवा, जिज्ञासुनी जीव नीनो जे उत्तरभागx छे ते पूर्वभागमा उत्तेजक भाषाद्वारा वर्णवेलो छे अने तेनो जे पूर्वभाग छे ते उत्तरभागमां सांकळेलो छे.
आपणे अहीं उत्तरभागमा वर्णवाएली अनुकरणीय जीवनी विशेज विचार करवानो छ. संवादकथा जेवी जीवनीद्वारा पण 'आपणा वर्तमान जीवनमा क्यां केवो अने कई रीते फेरफार करीए तो कल्याणमार्गनी प्राप्ति माटेनो आपणो चालु प्रयास सफळ थइ शके' ए स्पष्ट समजी शकाय एम छे xआ उत्तरभाग वांचनार जिज्ञासु नीचेनां पद्योनो भाव बराबर लक्ष्यगत करेः
'देवादिगतिभंगमा जे समजे श्रुतज्ञान, माने निज मत वेषनो आग्रह मुक्तिनिदान". "जे जिनदेह प्रमाणने समवसरणादि सिद्धि, वर्णन समजे जिननुं रोकी रहे निजबुद्धि."-श्रीमद् राजचंद्र.
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