Book Title: Puranome Jain Dharm Author(s): Charanprabhashreeji Publisher: Prakrit Bharati Academy View full book textPage 7
________________ प्राक्कथन - व्यक्ति के पुरुषार्थ का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति के लिए सम्यग्दृष्टि अथवा सम्यग्दर्शन परम आवश्यक है। मनुष्य एक प्रज्ञासम्पन्न प्राणी है। प्रज्ञा के "विकसिततम रूप को वह अपने अन्दर जागृत कर सकता है। प्रज्ञा के आलोक में ही यथार्थ का दर्शन सम्भव है। जैसे दर्शन प्रज्ञा पर निर्भर है वैसे ही धर्म श्रद्धा/आस्था पर निर्भर है। वर्तमान में दार्शनिक तथा धार्मिक परिवेश के विभिन्न आयाम दृष्टिगोचर होते हैं जिनमें पर्याप्त भिन्नताएँ हैं; परन्तु उन भिन्न एवं परस्पर विरुद्ध मन्तव्यों वाले दर्शनों में अथवा धर्मों में साम्य किस प्रकार से उपलब्ध होता है-इसका प्रस्तुत विषय “पुराणों में जैनधर्म भी एक उदाहरण बन सकता है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि मैं जो इस अध्ययन के योग्य हुई, उसका सारा श्रेय मेरे परम आराध्य पूज्य गुरुदेव स्व. आचार्यप्रवर श्री लालचन्द्रजी म.सा. के आशीर्वाद एवं प्रेरणा तथा स्व. पण्डित. मुनि श्री नूतनचन्द्रजी म.सा. के प्रयास को ही जाता है। उन्हीं के आदेशों एवं निर्देशों से प्रारम्भिक काल से ही अध्ययन की नींव मजबूत हो सकी। अतः मैं उनकी अविद्यमान अवस्था में उनके उपकारों एवं गुणों के प्रति नतमस्तक हूँ| - मेरे संसारपक्ष के पिता एवं वर्तमान में पूज्य श्री ऋषभचरणं मुनिजी म.सा. तथा संसारपक्ष की माता एवं वर्तमान में गुरुवर्या महासतीजी श्री शीलप्रभाजी म.सा. के प्रतिसमय मिलने वाले परम वात्सल्यमय आशीर्वाद तथा प्रेरणा के प्रति मैं हृदय से नतमस्तक एवं कृतकृत्य हूँ। .. मेरी दोनों अनुजा साध्वियों चन्दनप्रभा तथा नियमप्रभा का सस्नेह सहयोग भी मैं इस अवसर पर नहीं भूल सकती, क्योंकि उनके कारण ही सुविधाओं की प्राप्ति हो सकी। - मेरे शोध निर्देशक डॉ. शिवनारायण जोशी का आभार किन शब्दों में व्यक्त करूँ? उनके सुसंस्कृत व परिष्कृत दृष्टिकोण एवं स्नेहपूर्ण तथा निःस्पृह मार्गदर्शन में ही कार्य सम्पन्नता को प्राप्त हुआ है। सत्प्रवृत्तियों में सहयोग देने वाले मलकापुर निवासी श्रीमान् कन्हैयालालजी श्रीश्रीमाल. एवं वाडेगाँव निवासी श्रीमान् किशोरचन्द्रजी बोथरा का भी इस शोधकार्य के टंकण आदि कार्य में विशेष सहयोग रहा। ___मेरे हस्तलेखन की अव्यवस्था के बावजूद श्री प्रेमसा अग्रवाल ने बड़े मनोयोग से इस प्रबन्ध का टंकण कार्य सम्पन्न किया है। - अन्त में मैं उन सभी व्यक्तियों की हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस कार्य को सम्पन्न कराने में सहयोग दिया एवं मेरे आत्मबल की अभिवृद्धि करने में जिनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। -चरणप्रभा सास्तीPage Navigation
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