Book Title: Puhaichandchariyam
Author(s): Shantisuri, Ramnikvijay Gani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 14
________________ तस्सासी वररूवभूसियतणू सीएव सौलब्बया, लज्जा-दाण-दया-विवेयभवणं सम्मत्ततत्ते रया । निच्चं देवगुरूण पूयणपरा भत्ता सया भत्तुणो, भजा संपइसन्निया य सुहया लच्छि व्व -(सा)रंगिणो ॥ ४ ॥ दक्खो सूरो चाई विणयजुओ नाण-रूवसंपन्नो । रवलिगनामा सिट्ठी अंगरुहो तेसि संजाओ ।। ५ ।। मजा तेण सुधम्मधम्मकलिया लायन्नपुन्नोदही, दक्खिनस्स गिहं दयाय भवणं दीणेसु कंपालया । सीलालंकियविग्गहा सुचरिया चित्तण तुंगासया, उन्बूढा इह छदु-(इ) त्ति पवरा खाई गया सज्जणे || ६॥ . तीए जाया पुत्ता सज्झाय-ज्झाण-दाणकयचित्ता । देव-गुरुपूयणरया साहम्मियवच्छला सुहया ।। ७ ।। पढमो ताण पसिद्धो पासडनामो य नाहडो बोओ। तइओ सिद्धू सच्छो तुरिओ उण आमिगो दक्खो ॥ ८ ॥ पंचमओ पुण सोढू विक्खाओ सजणाण मञ्झम्मि । भयणीओ दोन्नि तेसिं संजाया बंधुयणपुजा ॥ ९॥ चानणनामा पढमा बीया तह पाहुय त्ति विक्खाया । सौलालंकियदेहा जिणधम्मरया सया कालं ॥ १० ॥ भत्तारभत्ता जिणधम्मजुत्ता जाऊभिहाणा अह नाहडस्स । जाया सुजाया वरसोलवंता सियभजा तह वाल्यक्खा ॥११॥ जा-(या)-(पुणो मोहिणिनामधेया भज्जा विणीया इह आमिगस्स। लच्छीहरस्सेव जहेव लच्छी सोह्यभज्जा लखमी पसिद्धा ॥१२॥ विन्नाण-नाणकुसला विक्वाया नाहडस्स दो तणया । पाजय-चाइडनामा संपन्ना रूव-गुणकलिया ।। १३ ।। चंदो इव जुन्हाए धवलितो निययमंदिरं सहसा । चंदप्पहु त्ति तणओ सजाओ सोढदेवस्स ॥ १४ ॥ अनया सोढुएणेवं चिंतियं हियए सुहं । " कायव्वो विउसा धम्मो सो य नाणाओ जायए ॥ १५ ॥ ........वाथुसाहणपरं नाणं सुहाणं निही, नाण सिद्धिपुरंघिसंगमकरं नाणं विवेयावहं। नाणं दाणपहाणमग्गिमगुणं नाणं नयासावह, नाणं कम्मविओगकारणमहो! नाणं च दोवोवम ॥ १६ ॥ नाणं विणा नो परमत्थि मन्नं मुखिस्स संसाहगमेव वत्थू। लेहावणे तस्स समुज्जमो ता जुत्तो सया भवजगाण लोए ॥१७॥" इइ सोऊणं(सोइऊण) एयं पुहइ(ई)चंदस्स राइणो चरियं । बहुविहकहानिबद्धं लिहावियं सोढदेवण ॥ १८ ॥ कीलो सेसोत्तिमंगं तदुवरि धरणीचकमं तस्स मेरू थासो डंडोवमो सो हिमगिरिवलयं कप्परं खोरसिद्ध(धू )। एवं विस्सं कुलालोवगरणतुलणा धारए जाव रम्म तावेयं पोत्थयं भो! जणियजणमणाणंदणं नंदउ त्ति ॥१९॥ सम्बत १२१२ वर्षे ज्येष्ठ शुदि १४ गुरावधेह श्रीमदणसिह(हिल)नयरसमावासे समधिगतपंचमहाशब्दवाद्यमानं बोलक्यकलकमलकलिकाविकासं कर्नाटरायमानमर्दनकर सपादलक्षवनदहनदावानलं मालवे राष्ट्रे निजाज्ञाया संस्थापनकर मलराजपट्टोदहनधुराधौरेयं पार्वतीप्रियवरलब्धप्रसाद इत्यादि समस्तराजावलीमालालंकारविराजमानश्रीकुमरपालदेवविजयराज्ये तत्पादावाप्तप्रसादमहाप्रचंडदंडनायकश्रीवोसरिलाटदेशमंडळे मही-दमुनयोरंतगले समस्तव्यापारानु(न्) परिपंथयतीत्येतस्मिन काले अणेरनामे नियमसंयमस्वाध्यायथ्यानानुरतपरमभट्टारकआचार्यश्रीमदजितसिंहसूरिकृते श्रावकसोढूकेन परमश्रद्धायुक्तेन पीचंदचत्रिपस्तकं विशद्धबुद्धिन लिखापितं । लिखितं च पाडतमदनसिंहेनेति ।।........|| मंगलं महाश्रीः॥छ। छ॥छ । छ॥" इस प्रशस्ति के अन्त में आये हुए गद्यसंदर्भ से पता लगता है कि गुजरेश्वर कुमारपालदेव के शासनकाल में उनके वोसरि नामके दण्डनायक के अधिकारवाले प्रदेश में; मही और दमुना नदी (दमनगंगा) के बीच बसे हुए अणेर प्राम के निवासी श्रेष्ठी सोहक श्रावक ने आ० श्री अजितसिंहसूरि के लिए यह पृथ्वीचन्द्रचरित्र लिखाया है और पं. मदनसिंह ने उसे लिखा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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