Book Title: Prayaschitt Vidhan Author(s): Aadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari Publisher: Aadisagar Aakanlinkar Vidyalaya View full book textPage 3
________________ मासEREx- BER करते हैं। इसलिए जनता की दृष्टि में उसे मारक कहा जाता है और वैद्यों की दृष्टि से लाभप्रद होने के कारण उसका सावधानी पूर्वक प्रयोग किया जाता है तथा प्राणों की रक्षा की जाती है। इसी प्रकार वस्तुओं के विषय में भिन्न-भिन्न प्रकार कारियां सुन जातो है और अनुभव में भी आती है । इस दृष्टियों पर गम्भीर विचार न कर कूप मण्डुकवत संकीर्ण भाव से अपने को ही यथार्थ समझ विरोधी दृष्टि को एकान्त असत्य मान बैठते हैं। दूसरा भी इनका अनुकरण करता है। ऐसे संकीर्ण विचार वालों के संयोग से जो संघर्ष होता है उसे देख साधारण तो क्या बड़े-बड़े साधु चेतस्क व्यक्ति भी सत्य समीक्षण से दूर हो परोपकारी जीवन में प्रवृत्ति करने की प्रेरणा कर चुप हो जाते हैं। और यह कहने लगते हैं - सत्य उलझन की वस्तु है। उसे अनन्त काल तक सुलझाते जाओगे तो भी उलझन जैसी की तैसी गोरख धन्धे के रूप में बनी रहेगी। इसलिए थोड़े से अमूल्य मानव जीवन को प्रेम के साथ व्यतीत करना चाहिए। इस दृष्टि वाले बुद्धि के धनी होते हैं, तो यह शिक्षा देते हैं - कोई कहैं कछु हैं नहीं, कोई कहै कुछ हैं। है औ नहीं के बीच में, जो कुछ है सो हैं।" साधारण जनता की इस विषय में उपेक्षा दृष्टि को व्यक्त करते हुए कवि अकबर ने कहा है"मजहबी बहस मैने की ही नहीं । फालतू अक्ल मुझमें श्री ही नहीं।" ऐसी धारणा वाले जिस मार्ग में लगे हुए चले जा रहे हैं उसमें तनिक भी परिवर्तन को वे तैयार नहीं होते। कारण अपने पक्ष को एकान्त सत्य समझते रहने से सत्य सिन्धु के सर्वांगीण परिचय के सौभाग्य से वंचित रहते हैं। लेकिन सत्य का स्वरूप समझने में डर की कोई बात ही नहीं है। भ्रम असामर्थ्य अथवा मानसिक दुर्बलता के कारण कोई बड़ा सन्त बन और कोई दार्शनिक के रूप में आ हमें रस्सी को सौंप बता डराता है । स्याद्वाद विद्या के प्रकाश में साधक तत्काल जान लेता है प्रायश्चित विधान -२Page Navigation
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