Book Title: Prashna Chintamani
Author(s): Virvijay, 
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 13
________________ प्रश्न- व्याभरणवस्त्रभृत् ।। संपूज्य गृहचैत्यांत-विवानि श्रीमदर्हतां ॥ १ ॥ श्यजितनायाधिकारे २०. प्र-तिर्यग्जूंजकदेवाः किं जातीयाः? पुनः कतिविधा तेषां स्थितिरुक्ता शति, न-व्यंतरजातीया | स्तिर्यग्जूभका देवा धनदकिंकराः, एगं पलिनवमं वित्ति पन्नत्ता इति जगवत्यंगचतुर्दशशतके ११. प्र-उष्टाष्टकर्मदयं कृत्वा जिनकल्पिकः साधुर्मुक्तिं याति न वा ? तथा श्रेणि प्रतिपद्यते न वा? न-जिनकल्पिकस्तस्मिन नवे मुक्तिं न याति तथाकल्पत्वात् , नपशमश्रेणिं तु कश्चित्पति पद्यते, न तु आपकश्रेणिमिति पंचवस्तुके २५. प्र–जिनकल्पिका यदा तद्भवे मोदं न यांति तदा मोदहेतुकं स्थविरकल्पं विहाय कस्मादेनं कल्पं प्रतिपद्यते ? न-जिनकल्पिकास्तद्भवे मोदं न यांति, तथापि तीव्रतपःकर्म समाचरंतस्ते नूनं स्वकीयमेकावतारित्वं कुर्वति, अतश्च ते तत्प्रतिपद्यते, तथा च नगवत्यंगे पंचमशते चतुर्थोद्देशकेऽपि—पणं भंते प्राणुत्तरोववाश्या देवा तबगया चेव समाणा श्हगयाणं केवलीणं सहिं आलावं संलावं वा करेश? करेंति एहंता गोयमा! पन से केणठणमित्यादि २३. प्र-अजितशांतिस्तवस्य कर्ता नंदिषेणः, स कः? न-नंदिषेणश्वेत श्रे |णिकपुत्रोऽन्यो वा कश्चिन्महपिरिति न सम्यगवबुध्यते, केचित्त्वाहुः श्रीशत्रुजयांतर्गुहायामजितशां- | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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